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स्त्रीभोग का क्या फल होता है ? विषयानन्द में धर्मभाव तो रहता ही नहीं है । उनमें भी विशेषतया स्पर्शेन्द्रिय के भोग में तो मन इन्द्रियों के एकाकार होनेपर ही आनंद प्राप्त होता है। इसका क्या परिणाम होता है ? शास्त्रकार कह गये हैं कि साधु यदि स्त्रीका सम्बन्ध करें तो बहुत से ऐसे पापों का बन्ध करता है कि जिन पापों के वर्णन सुनने मात्र से ही हृदय कंपायमान होजाता है, समकित से भी भ्रष्ट होता है और गृहस्थ को स्त्रीभोग नरक में लेजानेवाला है। इसप्रकार देखने से जान पड़ता है कि स्त्रीशरीर में कोई भी वस्तु सराहनीय नहीं है, खीका स्वभाव ऊक्त प्रकार का है और उसके भोग परिणामरूप इस भव में और परभव में महादुःख भोगना पड़ता है। इतना बताने के पश्चात् अब क्या करना चाहिये ये अपने आप विचार किजिये । । ललना ममत्वमोचनद्वार का उपसंहार और स्त्री की
हीन उपमेयता. निर्भूमिर्विषकंदली गतदरी व्याघ्री निराहो महाव्याधिर्मृत्युरकारणश्च ललनाऽनभ्रा च वजाशनिः । बंधुस्नेहविघातसाहसमृषावादादिसंतापभूः, प्रत्यक्षापि च राक्षसीति बिरुदैः ख्याताऽऽगमे
__ त्यज्यताम् ॥८॥ ___" (स्त्री) बिना भूमि से ( उत्पन्न हुई) विष की लता है, बिना गुफाकी सिंहनी है, बिना नामकी भयंकर व्याधि है, बिना कारण की मृत्यु है, बिना भाकाश की