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विचारमात्र से समझ में आसकती है । शास्त्र में देखा जावे तो कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य योगशास्त्र के तीसरे प्रकाश में लिखते हैं कि मुमुक्षु जीव रात्री में निद्रा से जगजाय तो विचार करे कि विष्ठा, मल, मूत्र, श्लेष्म, मज्जा, स्नायु और अस्थि की बनाई हुई, बाहर से सुन्दर जान पड़नेवाली स्त्रियें चमड़े की थैलियें हैं । कदाच जो इस थैली में हो उसको बाहर निकाला हो अथवा थेली को उल्ट दी हो तो उसका इच्छुक पुरुष शियालो और गिद्धों से उसकी रक्षा करने को खड़ा रहे ! ( क्योंकि ये पदार्थ ही ऐसे हैं कि पशु इनसे अपने आप खिचे चले आते हैं ; स्त्रीरूप शस्त्र से ही जब कामी पुरुष जीत लिये जाते हैं तो फिर कामदेव क्यों तद्दन नामका शस्त्र हाथ में नहीं उठाता, अर्थात् कामी के पास चाहें किसी भी प्रकार का शत्र क्यों न हो जीत लिया जायगा; उसको जीतने के लिये बड़े शस्त्रकी आवश्यकता न होगी।
स्त्रियों में चापल्य, माया आदि दोष स्वाभाविक ही होते हैं । नैतिक शास्त्र में कहा है कि-" असत्य, साहस, माया, मूर्खता, लोभीपन, अपवित्रपन, निर्दयपन इतने दोष त्रियों में स्वाभाविकतया ही होते हैं । अपना अनुभव है कि पुराने संसार में अहमदाबादी कीनखाब सुन्दर वस्त्र होता है जब कि उन्नत संसार में फ्रेन्च सील्क ( French Silk. ) सुन्दर वस्त्र होता है, लेकिन बात तो एक ही है । वर्तमान समय के खर्चीले जीवन में स्त्रिये किस हद तक जवाबदार है यह एक विचार करने योग्य प्रश्न है । खादीप्रचार में स्त्रीवर्ग कितना पिछड़ा हुआ है इसके कारण भी विचारने योग्य हैं ।