________________
व्यर्थ भटकना है । इसप्रकार स्वरूप को समझनेवाले बहुत कम हैं, परन्तु इसका समझना बहुत आवश्यक है ।। २५ ।।
सगेसम्बन्धियों का स्नेह स्वार्थी है; अतः स्वस्वार्थ साधन में लीन रहना समता का चोथा साधन है ।
स्निझन्ति तावद्धि निजा निजेषु, पश्यन्ति यावन्निजमर्थमेभ्यः । इमां भवेऽत्रापि समीक्ष्य शतिं, स्वार्थे न कः प्रेत्यहिते यतेत ॥ २६ ॥
·
" सगे सम्बन्धी जब तक अपने सगों में किसी भी प्रकार
का अपना स्वार्थ देखते हैं तब तक ही उनपर स्नेह रखते हैं; इस भव में भी इस प्रकार की रीति देख कर परभव के हितकारी अपने स्वार्थ के लिये कौन यस्न नहीं करता है १ " ।। २६ ।। उपजाति.
विवेचन – अवलोकन करके बारीकी से देखनेवाले को मालूम होगा कि वृद्ध पुरुष के मरने पर उसके सगे सम्बन्धी कहते हैं कि " भाई ! यह तो भाग्यशाली हो गया इस छोटी सी बात से भी बहुत शिक्षा मिलती है । ऐसे उद्गार निकलने का क्या कारण है ? वृद्ध पुरुष में किसी भी प्रकार का स्वार्थ नहीं रहा था, वह कुछ भी खुश होकर नहीं देता था । स्त्री को, पुत्र को वारिस बनने में और यथेच्छ उपयोग करने में वह अनेक प्रकार से प्रतिबंध करता था । स्त्री को, पुत्र को और सगों को वृद्ध पुरुषों से किसी भी प्रकार के लाभ होने की आशा नहीं होती हैं । इस कारण वृद्ध पुरुष का मरना शुभ माना जाता है ।
ܕܕ