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साम्यमेष्यति यदा तव चेतः,
पाणिगं शिवसुखं हि तदात्मन् ॥ १७॥ ___" हे चेतन ! सर्व चेतन और प्रचेतन पदार्थों में होनेचाले स्पर्श, रूप, रव (शब्द), गंध और रस में तेरा 'विच समता पायेगा, तव मोक्षसुख तेरे हाथ में पाजावगा।"
स्वागतावृत्त. भावार्थ-समता के प्रथम साधनरूप चार समकित भावनाओं का वर्णन किया गया, अब दूसरा साधन इन्द्रिय विषयों पर समभाव रखने का है उसका वर्णन किया जाता है । स्त्री, पुत्र आदि चेतन पदार्थ और शय्या, वस्त्र आदि अचे. तन पदार्थ इन दोनों के द्वारा अनेक प्रकार के स्थूल विषय प्राप्त होते हैं। कोमल स्पर्श से सुख और कर्कश स्पर्श से दुःख होता है उसी प्रकार रूपवान स्त्री तथा वस्तु के देखने से प्रेम और कुरूप स्त्री तथा वस्तु देखने से द्वेष होता है । सुगन्धी की तरफ नासिका आकर्षित होती है और दुर्गन्धी से मुँह मोड़ती है, तथा मिष्ट पदार्थों के चखने से जिह्वा से पानी टपकने लगता है जब कि अनिष्ट पदार्थ खानेसे मुँह खराब होता है और सुस्वर ध्वनि सुन कर कान खिच जाते हैं और दुःस्वर ध्वनि सुननेपर कानों में अँगुलिये लगानी पडती हैं। इन पांच इन्द्रियों के तेईस विषय हैं, इन सब विषयों पर जब तुझे समभाव होगा
और अच्छा या बुरा किसी प्रकार का भेदभाव तेरे मन में न रहेगा तब मोक्षसुख तेरे हाथ में आजायगा। ये पांचों इन्द्रिय विषय इस जीव को बहुत कष्ट पहुंचाते हैं तथा इसे संसार में भटकानेवाले भी सचमुच येही हैं । नीतिशास्त्रकारों का कथन है कि: