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है, भव्य है, अलौकिक है, नूतन है, सर्वोत्तम है और अनुभूतपूर्व है । समता से जो सुख होता है वह दूसरे के सुख को ले कर अथवा कम कर के नहीं होता परन्तु वह स्वसंपन्न है, स्वसंपूर्ण है । दूसरों के लिये उपकारी और दोनों के लिये मान
दावा है। पौद्गलिक और आत्मिक आनन्द में यही एक विशेषता है । समता से प्राप्त हुआ आनन्द अनुभव समय में ही इतना सुख देता है कि जितना इस जीवने पहले सांसारिक पदार्थों में अनुभव ही न किया होगा । अतः हे भाई ! तूं एक बार साम्यभाव धारण कर, कर, फिर तूं उस के सुख को देखना । यदि तुझे उस में कोई अपूर्वता दिख पड़े तो फिर उस सुख अनुभव करने का विचार करना, परन्तु एक बार तो हमारे आग्रह से ही उस पथ का पथिक बन । हमने इस रस का स्वाद कभी कभी चख्खा है और जिस से तुझे परामर्श करते हैं कि तेरे संसार में रहते हुए ही मोक्षसुख की बानगी चखनी हो तो यह उत्तम मार्ग है ।
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समता की भावना ( Ideal ) उस का दर्शन. न यस्य मित्रं न च कोऽपि शत्रुनिजः परो वापि न कञ्चनास्ते । न चेंद्रियार्थेषु रमेत चेतः,
कषायमुक्तः परमः सयोगी ॥ ६ ॥
" जिस के कोई भी मित्र नहीं और कोई भी शत्रु नहीं; जिस के कोई अपना नहीं और कोई दूसरा नहीं; जिस का मन कषाय रहित हो और इन्द्रियों के विषयों में रमय न
करता हों, ऐसा पुरुष महायोगी है "
उपेन्द्रबा
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