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के उपरान्त इस प्रन्थ में वर्णित सोलह अधिकार अनुक्रम से दिये गये हैं, वे निम्न लेखित हैं:
१.समता २ स्त्री( ललना ) ममत्वमोचन. ३ अपत्यममत्वमोचन. ४ धनममत्वमोचन. ५ देहममत्वमोचन. ६ विषयप्रमादत्याग. ७ कषायत्याग.
शास्त्राभ्यास और वर्तन-अंतर्गत चतुर्गति के दुख १ चितदमन १. वैराग्योपदेश. ११ धर्मशुद्धि. १२ गुरुशुद्धि १३ यतिशिक्षा. १४ मिथ्यात्वादि निरोध-संवरोपदेश. १५ शुभवृत्ति. १६ साम्य रहस्य.
ये सोलह अध्यात्म विषय हैं । इन का सम्पूर्ण ग्रन्थ में विवेचन किया गया है और इन का पारस्परिक सम्बन्ध भी उचित स्थान पर बताया गया है । यह सब कल्पवृक्षतुल्य है जो इस के उपासक को मनोवांछित फल देता है। अतः इस को वांचने मनन करने का आग्रह प्रसंगवश किया जाकर प्रन्थ को प्रारम्भ किया जाता है। • ३ । ... इति ग्रन्थकारण
- इति ग्रन्थकारकृत उपोद्घात