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प्राज्य राज्य सुभगदयिती नदमा नन्दनानां, रम्य रूपं सरसकविताचातुरी सुस्वरेत्वम् ।... नीरोगत्वं गुणपरिचयः सज्जनत्वं सुबुद्धि, ।
किं तु बम फलपरिणति धर्मकल्पमस्य । महान राज्यं, सुन्दर स्त्री, पुत्रपुत्रिये और उनकी रमणीय स्वरूप, रसयुक्त कविता बनाने की चातुर्यता, सुन्दर भाषण अथवा स्वरमाधुर्य्यताकी तीन शक्ति, निरोगीपन, गुणपरिचय, सजनपन, तीवबुद्धि आदि-सर्व वस्तुयें धर्मरूप कल्पवृनके फल हैं ।
शांतसुधारस. यस्यशियं श्रुतकृतातिशयं विवेकपीयूषवर्णरमणीयरमं श्रंयन्ते । सद्भावना सुरलता न हि तस्य दूरे,
लोकोत्तरप्रशमसौख्यफलप्रसूतिः ॥ (समती योग्य कौन है ?) जिन प्राणियों का अन्तःकरण सिद्धान्तके परिचयसे विकसित पाया हुआ और विवेक अमृतके बरसनेसे शोभायमान हुआ हुआ है उनकी ही सद्भावना प्राश्रय लेती है और उनहीं प्राणियोंके लिए. लोकोत्तर समता सुखके फलको जन्म देनेवालो ( मोक्षप्राप्ति करानेवाली ) कल्पलता दूर नहीं है ।
शांतसुधारस