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________________ त्रण बालावबोध सहित ... [जि.] जिम जिम धर्म तूटइ। बली जिम जिम दुट्ठाण दुष्टाशयहुई इह दुःषमाकालि उदओ अति प्रौढिमा हुइ तिम तिम सम्यग्दृष्टि जीवहूई सम्यक्त्वं उल्लसह वाधइ ॥ ४२ ॥ . [मे.] ईणि दुःखमाकालि जिम जिम धर्म त्रूटइ ओछउँ थाइ तिम तिम पापी जीव दुष्टनई उदय महत्त्व हुइ । अनइ सम्यग्दृष्टि 3 जीवनइं सम्यक्त्व गाढउं उल्लसइ दृढ थाइ ॥ ४२ ॥ . . . . . [सो.] हवडांनइ कालि धर्मना धणीनइं जं उदय नही । ते कारण कहइ छइ । [जि.] सम्यग्दृष्टि जीवहूइ सम्यक्त्व वाधतई हूंतइ अति उदय न दीसइ। 10 [मे.] हिवडांनइ कालि धर्मवंतइं उदयु नहीं ते कहइ । . जयजंतुजणणितुल्ले अइउदओ जं न जिणमए होइ । तं किढकालसंभवजिआण अइपावमाहप्पं ॥४३॥ [सो]. जयजंतु० जगना जीव रहई जननी माता समान छइं ए जिनमत सर्व जीवहूई सुखदायक हितकारक भणी। एहवा जिनमतमाहि जं जीव रहइं अतिउदय नही, ऋद्धि मनि महत्त्व ठाकुराई नही । तं किट्ठ० ते क्लिष्टकाल विरूउ दुःखमाकाल हुंड अवसर्पिणी भस्मक ग्रहनइं उदय करी सहित एवहिं कालि ऊपना जे मारेकम्मी' जीब तेहना पाछिल्या भवनां अतिपापनउँ माहात्म महिमा जाणवउ । जे धर्म लहहं छई ते भव्य जीव आगलि केतलई कालि मोक्ष जाणहार : इसिउं जाणिवउं ॥४३॥ १ भारीकम्मी. २ जाणिवउ. ३ जाणहार भणी.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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