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: षष्टिनातक प्रकरण : जेसिं जेहां कुगुरुनी मोहादिक चंडिमा क्रूरता हूँ देखी करी सुगुरु सुविहित ऊपरि भक्ति अतिनिबिड अतिगाढी भविक जीवहूई हुई। जिम अभति दीठीई भातिइं मन रहइ ॥ ४१॥ - [मे.] ते कुगुरु वखाणउं हूं भलई दीठउ । जेहनी अब्रह्म3 सेवादिक कुचेष्टा देषी अनइ सुगुरु ऊपरि भक्ति अतिनिबिड हुई । भविक जननइ कारणि ॥४१॥ .
[सो.] विरूउ काल देखी जाणहूई विशेष सम्यक्त्व उल्लसइ । ए वात कहइ छ।। ६ [जि.] अथ मिथ्यालोदग्निई हूंतइ भव्य जीवहूई सम्यक्त्व 19उल्लसइ । ए बात कहइ । जह जह तुदृइ धम्मो जह जह दुट्ठाण होइ अइउदओ। सम्महिद्दिजियाणं तह तह उल्लसइ सम्मत्तं ॥४२॥
[सो.] ईणइं पांचमइ आरइ दुःखमाकालि जिम जिम धर्म • त्रूटइ ओछउ थाइ । जह जहू दुट्टाण० अनइ जिम जिम दुष्ट 15पापी जीव रहई अतिउदन ठाकुराई ऋद्धि मान महत्त्व हुइ ।
सम्मद्दिट्टि तिम तिम सम्यग्दृष्टि जाण जीव रहइं सम्यक्त्व गाढ़उं गाढउं उल्लसइ दृढ थाइ । जिसिङ्गं परमेश्वरि दुःखमाकालनउँ स्वरूप कहिउं हूतउं तिसिउंइ जि देखीइ छइ । इम परमेश्वरना वचन अपरि
आस्था आवइ । जिम ए साचउँ तिम बीज़ाई परमेश्वरनां वचन साचां । २०इसी परि सम्यक्त्व दृढ थाइ ॥ ४२ ॥
१ जि. इह उदओ. २ उछाउ.