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. पंष्टिशतक प्रकरण ।
वंतनइ घरि लक्ष्मी हुइ तेह लगइ अनेक तीर्थयात्रा प्रासाद संघभक्ति दानादिक अनेक पुण्य करी मरी परलोकि सुगतिइं जाई । आघउ संसार तरइ ॥३०॥
[जि.] लक्ष्मी द्विविध हवइ हुइ। एगा एक लक्ष्मी पुरुषनी 5 गुणरिद्धि दक्षदाक्षिण्यादिक गुणलक्ष्मी क्षिपावइ नीगमइ । एगा एक लक्ष्मी गुणश्रेणि उल्लसावइ । किसातउ ? अपुण्य अनइ पुण्य तेह बिहुंनउ अनुभाव प्रभाव तेहतउ । एतलइ पापानुबंधिनी लक्ष्मी पुरुषनी गुणश्रेणि विणासइ। बीजी पुण्यानुबंधिनी लक्ष्मी गुणश्रेणि वधारइ ॥३०॥
[मे.] लक्ष्मी पुणि बिहु प्रकारि हुई। एक लक्ष्मी आवती 1०हूंती पुरुषनई औदार्यादिक गुण अनइ ऋद्धि बिहुँनई क्षपावइ नीगमइ । एक लक्ष्मी आवती हूंती विनयविवेकादिक गुणनइ उल्लसावइ । ते पाप नइ पुण्यनउ अनुभवु जाणिवउ ॥ ३०॥
[सो.] हेव कुगुरु कुश्रावक स्वरूपु कहइ छइ ।
[जि.] अज्ञान गुरु-श्रावकनउँ स्वरूप कहइ छइ । 15गुरुणो भट्टा जाया सड्ढे थुणिऊण लिंति दाणाई। दुन्नि वि अमुणियसारा दूसमसमयम्मि बुडंति ॥३१॥
. [सो.] गुरुणो० ईणई दुःषमाकालि संप्रति गुरु भाट थ्या। जिम भाट छंद छप्पया करी. लोक रीझवी दान लिइ तिम गुरुइ वंश पूर्वज गोत्र वर्णवी श्रावक रंजवी आहारवस्त्रादिकना दान २०लिइं । दुन्नि वि बे गुरु अनइ श्रावक अमुणिय० 'दुल्लहा हु
- १ हुइ ते पाछिलइ भवि जीवदया सहित जिनधर्म आराधिउ हुइ तेह पुण्यानुबंधिया पुण्यनइ प्रभाविइ हुई. २ अनेकि. ३ मुं. ४ स्वरूप. ५ जि. दोन्नि.. ६. दुःखमाकालि. ७ छपाया. ८ 'दुल्लहा...एहवउं' सुधीनो अंश सो. नी पहेली प्रतमाथी पडी गयेलो होइ बीजी प्रतमांथी लीधो छे.