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षष्टिशतक प्रकरण
मरिवउं ? एह भणी कुलाचारनउ कांइ नहीं । सूधउ धर्म जि जाण हूंतइ लेबउ ॥ ६ ॥
[जि.] लोकनइ प्रवाहिकरी आपणइ कुलऋमि हे मूढ ! धर्म इसिउं जइ हुइ तर पछइ मिच्छाण वि म्लेच्छनउ धर्म | अहम्म" परिवाडी अधर्मनी परिपाटी श्रेणि थाकी रही ॥ ६ ॥
[मे. ] रे मूर्ख ! लोकप्रवाहि आपणा २ कुलनइ आचारि चालतां जउ धर्म्म हुइ तउ म्लेच्छ खाटकी वेश्या ते सहू आपणइ २ कुलाचारि चालइ छइ । तउ तेहनइ धर्म होसि । एतइ अधर्मनी परंपरा नाठी । अधर्म्म किहांइं नथी । सहू धर्म्मवंतइ जि हूउं ॥ ६ ॥
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[जि.] दृष्टान्तनइ बलि करी धर्म्महई मोटाई देखाइ । लोयम्मि रायनीईनायं न कुलक्कमम्मि कइया वि । किं पुणतिलोअपहुणो जिणंद धम्माहिगारम्मि ॥ ७ ॥ [सो.] लोकइ माहि राजनीतिनउ न्याय कुलक्रम माहि नावई । राजनीतिनउ मार्ग जूउ । कुलाचार जूउ । तउ पाधरी राजनीति माहि 15 कुलाचार न जोइ । तिहां राजाज्ञाइ जि जोवी । किं पुण० त्रैलोक्य' त्रिभुवनना प्रभु ठाकुरु श्रीजिनेन्द्र वीतरागना धर्मन अधिकारि कुलाचार न जोइ । तिहां सर्वथा जोवा न आवहं । तिहां खरी वीतरागनी आज्ञाइ जि लेईनइ धर्म करिव । इसिउ भाव ॥ ७ ॥
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[ जि . ] लोकइ माहि राजनीति मोटी । नायं ज्ञातं दृष्टान्त । 20 कुलक्रमिकइया विकिवारई नीति न्यायमार्ग प्रमाण नहीं । एलइ राजनीति जिम प्रमाण तिम जिनधर्म जि प्रमाण । जइ लोक माहे इसु छइ त त्रैलोक्यन स्वामी श्रीजिनेन्द्र तेहनउ धर्मन अधिकारि
.१ जिनिंद . २ मे. 'धम्माहियारम्मि ३ तउ त्रैलोक्य ४ ठाकुर. ५ किम.