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अण. बालावबोध सहित
विषयनइ काजि धनादिक मुसीतउ हर्ष मानइ तिम मिथ्यात्वरूपिणी वेश्याइं मुसीतउ जीव धर्मरूपीउं निधान गयउं न जाणइ ॥५॥
[सो.] को इसिउं कहिसइ । आपणइ वडांनइं कुलाचारि चालीइ। एतलउ धर्म । बीजउ विचार कांई न कीजइ। तेह : आश्री कहइ छइ ।
[जि.] कुलक्रमागत भावइ तिसु धर्म न करिवउं । ए वात प्रकासइ छ।। लोअपवाहे सकुलकमस्मि जइ होइ मूढ धम्मु त्ति । ता मिच्छाण वि धम्मो थक्का य अहम्मपरिवाडी ॥६॥
[सो.] रे मूढ ! जउ लोकनइ प्रवाहि आपणइ २ कुलाचारि० चालतां धर्म हुइ तउ कुणएक धर्मवंत नहीं ? सघलाइ खाटकी, माछी, वेश्या, घांची, मोची, ठठार प्रमुख सहू आपणइ २ कुलाचारि चालई छई। आगिला वडा पूर्वज जे काम करता ते पाछिला' करई छई । ता मिच्छाण वि धम्मो० तउ जे पापी हिंसाना करणहार कुमार्गना चालणहार म्लेच्छ तेहहूई धर्म हूउ। तेहइ धर्मवंत हुआ। थका०15 अधर्म पापनी परिपाटी परंपरानी वातइ नाठी । अधर्म किहांइं छइ नही । सहू धर्मवंतइ जि हूउं। एतलइ इसिउ भाव । कुलाचार जूउ । धर्मनउ मार्ग जूउ। कुलाचार किहनउ केतलउ पुण्यमय हुइ। किहनउ पापमय हुइ। पुण्य धर्मनउ आचार जिहां जीवदया सत्यवचन ब्रह्मचर्यादिक गुण तिहां जि छइ । अनेथि नथी । केती वारइं पूर्वज दालिद्री३० हुसिई तउ संतानीइ किसिउं लक्ष्मी आवती न लेवी ? अथवा को पूर्वज कूअइ पडी मूउ हुसइ तउ संतानीअई किसिउं कूअइ पडी . १ कहिसिइ. २ एतलई. ३ ते. ४ जि. धम्म त्ति... पाछिलाई. ६ हुइ.