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________________ त्रण बालावबोध सहित मूर्ष ! अनेरा देवहूई प्रणमतउ हूंतउ मुसिउ छई। सम्यक्त्वरूपिउ धन तेहना हारवइतउ ॥३॥ [मे.] रे जीव ! एकल अ जि जिनमत जिनभाषित धर्म आराधतां हूंतां भव संसारना दुक्खनइं फेडइ। अनइ इतर हरिहरादिकनई प्रणमतां थोडा सुखनइ काजि मूढ ! मूर्ख ! मुसाणउ छइ । 5 धर्म हूंतउ चूकइ छइ ॥ ३॥ [जि.] जिनधर्मनउ प्रभाव कही सम्यक्त्ववंतहूई मोक्षपदप्राप्ति बोलइ छइ । देवेहिं दाणवेहिं य सुओ न मरणाओ रक्खिओ कोइ। दढकयजिणसंमत्ता बहुअ बि अयरामरं पत्ता ॥४॥ 10 [लो.] देव-दानवे जाष शेष क्षेत्रपाल आसपाल गोगा विणायग चामुंडादिके को मरणतउ राखिउ किहांई न सांभलिउ । तेहे को मरणतउ न रखाई। निकाचित कर्म कुणइं टाली न सकीइं। जउ एहे को मरणतउ राखिउ हुइ तउ को किहांई जीवतउ देखीइ । पुण नथी । घणाइ देवदेवता आराधी जमारउ सघलउ मिथ्यात्वनां सई 15 करीनइ मूआइ जि । आघाई घणा संसारना जन्ममरण जि. उपार्जियां । दृढकय दृढ वीतरागनउं सम्यक्त्व पालीनइ बहु० घणाइ अनंता जीव अजरामरपणइ पहुता। मोक्ष पाम्या । जन्मजरामरणरहित हूया ॥४॥ [जि.] देवे दानवे पुण कोई लोक मरण हूंतउ राखिउ सांभलिउ ?20 अपि तु कोई न सांभलिउ । कोई अमर हूतउ सांभलिउ ? दृष्टीकृत - १ वीजी प्रतोमां नथी. २ रक्खइं. ३ सकाई: ४ मरतउ. ५ कोहि. ६ सइं. ७ अनंता. ज. ८ प्राम्या. ९ मरणा. . . . . . . . .
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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