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त्रण बालावबोध सहित
जाइं। तिहां कांइ कारण संभावीइ । पछइ पाछिली रात्रिनी पोरसिइंतेहमाहि पइसी राष वेलू तेल देषी। थोडी थोडी वस्तु गांठिं बांधी सूतउ । प्रभाति पोसाल बाहिरि जई जउ जोअइ तउ वेलू राष तेल दीठा । विस्मय ऊपनइ भोलउ चेलउ पूछिउ । ए सिइ काजि आवइ ? चेलइ सर्व वात कही । वेलू वर्तिनानइ काजि । रक्षा जीवजइणानइ काजि । 5 तेल लेपनइ काजि । इम संदेह भागउ । पच्छइ प्रगट हुई सिद्धांततत्त्व सांभली श्रीसम्यक्त्वमूल बार व्रत पडिवजी मराठि पाछउ आवी जान करी आंबड पुत्रनइं साथिं लेई गुरु समीपि आवी महामहोत्सवपूर्वक पुत्रनई दीक्षादि वरावी । ते ऋमिई २ भणतां गुणतां चारित्र पालतां श्रीजिनेश्वरसूरि हूया । पछइ नेमिचन्द्र भंडारीइं श्रीजिन-10 पत्ति सूरिनी रीति देषी । श्रीजिनवल्लभमरिना कीधा पिंडविशुद्धिप्रमुख ग्रन्थ सांभली ते गुरुनां वचन सर्व सिद्धान्तनइं मिलतां जाणी आस्था ऊपनी । सम्यक्त्वनी दृढतानइ काजि परोपकार भणी साठिसउ गाथारूप ग्रन्थु कीधउ । हिव ते गाथा लोकनइं समझाविवा भणी श्रीजिनचन्द्र सूरिनइ आदेसि वणारीसि मेरुसुन्दरि गणिइं वार्ता बालावबोध संक्षेपिं कीजइ । तिहां धुरि च्यारि बोल सारभूत कहीइं॥
জাবি শ্রী সুস্থ স্তম্ভ স্ব স্ব লক্ষ্য। धन्नाण कयस्थाणं निरंतर बसाइ हिययस्मि ॥१॥
[सो.] एक श्रीअरिहंत वीतरागदेव' बीजा सुगुरु शुद्ध२० चारित्रिया शुद्धमार्गप्ररूपक गुरु बीजउ शुद्ध धर्म जीवदयामूल कर्मक्षयहेतु धर्म चउथउ पंचपरमेष्ठिनमस्कार सर्व सिद्धांतमाहि सार सर्वपापक्षयंकर महामंत्र नउकार । ए च्यारि बोल सर्व जगत् अनइ सर्व धर्ममाहि सार कुणह एक धन्य उत्तम भव्य अनइ कृतार्थ भाग्यवंत
१ देवा. २ गरु. ३ जग.