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षष्टिशतक प्रकरण
तथा हि । श्रीखरतरगच्छ श्रीजिनेश्वरसूरिनइ पिताई श्रीनेमिचन्द्र भंडारी श्रावकि विधिपक्षस्थापक ए साठिसउ ग्रन्थ कीउ । तिहां धुरि सर्व विघ्नोपशान्त्यर्थ इष्टदेवतानमस्काररूप नामग्रहणपूर्वक सम्यक्त्वस्थापक ग्रन्थकार प्रथम गाथा कहइ छइ ॥
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[.] सयलसुरासुरनमियं पासजिणं पणमिऊण भावेणं । बालाण बोहणत्थं पयडं विवरेमि सहिसणं ॥ १ ॥
इहां श्रीखरतरगच्छ निरुपमगुणनिधान श्रीजिनवल्लभसूरिनइ पाटि श्रीजिनदत्तसूरि । तेहनइ पाटि श्रीजिनचन्द्रसूरि । तत्पट्टालंकार श्रीजिनपत्तिसूरि श्रीपन्तननगरमाहि विजयवंत वर्त्त । 1. इस प्रस्तावि मरुदेशमंडन मरोटि नगरि श्रीनेमिचन्द्र भंडारी भार्या लषमिणि पुत्र आंबड सहित सुखिई बसई । अन्यदा प्रस्तावि गाथा १ नेमिचन्द्र भंडारीह व्याख्यान माहि सांभलि । ति किसी ।
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अक्खंडिय चारित्तो वयगहणाउ जो भवे निच्चं ।
तस्स सगासे दंसण वयगहणं सोहि गहणं च ॥ १ ॥
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ए गाथा सांभलीनह आलोअगनी इच्छाई बार वरस सीस-सुगुरुनी परीक्षा जोअतर २ पतन नगरि आव्यउ । सगली पोसालं द्रव्य क्षेत्र काल भावना मेलि सुगुरु अणलहतर मनमाहि चिन्ता धरत हाट एकनइ थडइ बइठउ छइ । इस प्रस्तावि श्रावक पांच-सात श्रीजिनपप्तिसूरिना गुण वर्णवता सांभली पूछ्या । तुम्हे केहना गुण कहउ 20छउ ! तेहे श्रीजिनपत्तिसूरिना गुण कया । पछद तींह श्रावकां - संघाति पोसालई आवी गुरुनी देसना सांभली । गुरुनां लक्षण ईर्यासमिति प्रमुख जोअतउ रात्रि पोसालनइ षूणइ सूतउ २ चींतवइ । एतां दिवसमाहि प्रमादनउं कारणु न दीठउं । रात्रिं तउ पउंजता जइणाई हीडई छई । सिध्याइं ध्यान करई छई । पणि वार २ महातमा ढूंढीमाहि