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उपर जणावेली रचनाओ उपरांत नेमिचन्द्रकृत एवा बे बालावबोधो जाणवामां आव्या छे, जेनी नोंध आ पहेलां कोई विद्वाने करी नथी. एक छे गुजराती आलंकारिक सोमपुत्र वाग्भटकृत 'वाग्भटालंकार' (विक्रमना १२मा शतकनो उत्तरार्ध )नो बालावबोव तथा बीजो बौद्ध विद्वान धर्मदासगणिकृत अलंकारग्रन्थ 'विदग्धमुखमंडन 'नो बालावबोध. आ बन्ने कृतिओ खास नोंधपात्र एटला माटे छे के संस्कृत अलंकारग्रन्थोना बालावबोधो जबल्ले ज मळे छे. 'वाग्भटालंकार 'नो बालावबोध मेरुसुन्दरे सं. १५३५ मां रचेलो छे; ए ज वर्षमां लखेली एनी २७ पत्रनी शुद्ध प्रति में लगभग अढी वर्ष पहेलां जोधपुरना महाराजाना पुस्तकालयमां जोई हती अने एमांथी थोडी जरूरी नोंध करी लीची हती. ‘विदग्धमुखमंडन 'ना बालावबोवनी जोधपुरना जैन भंडारनी एक अपूर्ण हस्तलिखित पोथी उपाध्याय विनयसागरजीए उपयोग माटे मोकली हती. ए प्रति लिपि उपरथी सत्तरमा शतकमां लखायेली जणाय छे. आ बन्ने कृतिओ, उपर कयु ते प्रकारे, महत्त्वनी होवाथी एमांथी केटलांक नमूनारूप अवतरण अहीं आपुं छु. पहेलां वाग्भटालंकार बालावबोधनो आदि-अंत जोईएआदि॥०॥ उँ नमः श्रीश्रुतदेवतायै ॥ सिद्धं सिद्धिदमीश्वरं मघवता संस्तूयमानं परं स्फूर्जत्संसृतिदुस्तराब्धितरणे चञ्चत्तरीसुन्दरम् । . आनन्दामलवल्लरीप्रविलसत्प्रत्यग्रधाराधरं वन्दे नाभिनरेन्द्रनन्दनमहं श्रीमद्युगादीश्वरम् ॥ १ ॥ अनेकसाधुसाध्वीभिः श्रावकश्राविकादिभिः । पूरितोऽस्ति धराख्यातो गच्छः खरतराभिधः ॥२॥