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त्रण बालावबोध सहित
[जि.] इसुं प्रभु आगलि प्रार्थी आपणी मनोगत चिंती कहइ । अइमिच्छवास निकिट भावओ गलिअगुरुविवेआणं । अम्हाण कह सुहाइं संभाविजंति सुविणे वि ॥१५८॥
[सो.] अति गाढउ घणा कालनु मिथ्यात्वनु वास संस्कार तीणइं करी जे ऊपनु निकृष्ट भाव मइलु परिमाण तीणं करी गलिउ 5 गिउ गुरु विवेक छइ अम्हारउ एहवा अम्ह रहई सुहणाइमाहि शुभ पुण्य किहां संभावीइ ? अथवा सुख मोक्षसुख किहां संभावीइ ? ते गाढउं दुर्लभ ॥ १५८॥
[जि.] इह संसारमाहे एवहां अम्हहूई सुमिणे वि सुहणाईमाहि किसु सुख संभावीइ ? अपि तु न संभावीइ । अम्हे किसा छां ?ro मिच्छवास मिथ्यात्त्वनउ संस्कार तिणि करी निकृष्ट विरउ भाव तेहतउ गलिउ गुरु गुरुउ विवेक तत्त्वातत्त्वविचार जेहनउ छइ ॥१५८||
[मे.] इहां घणा कालनउ मिथ्यात्त्ववासनउ जे निकृष्टभाव तीणइ गलिउ गरुउ विवेक एवहा अम्हे तेहनई सुइणाइमाहि परम सुख मोक्षसुख किम संभावीयइं ? ॥ १५८ ॥
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[सो.] वली कवि कहइ छइ ।
[जि.] वली कांई मनोगत कहइ । जं जीविअमित्तं पि हु धरेमि नामं च सावयाणं पि । तं पि पहु महाचुजं अइविसमे दूसमे काले ॥१५९॥.
[सो.] जं इसिइ अतिविषमि दुःखमाकालि वर्ततइ जीवितव्यः० मात्रई धरीइ अनइ श्रावकनुं नामइ जं धरीइ तेहइ हे प्रभु ! महा आश्चर्य । जेह भणी ए काल अपार अनर्थबहुल अतिधर्मरहित तेह भणी ॥ १५९॥
१ जि. मे. इह मिच्छवास. २ जि. निकट्ट. ३ जि. मे. सुमिणे. ४ गाढु. ५ 'वास संस्कार...अम्हारउ एहवा' एटलो पाठ सो.नी बीजी प्रतमाथी पडी गयो छे.