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________________ षष्टिशतक प्रकरण 1 तेहे वीतराग पूजिउ नहीं । जे प्रासाद-बिंब आपणा पारका करी देषई ते मूढनी मोहस्थिति अजाणिवउं समय सिद्धांतने निपुणे ॥ १५१ ॥ १५२ [ सो.] वली एह जि बात कहइ छ । [ जि.] एह ज वात प्रकारांतरि वली कहइ । 5 सो न गुरू जुगपवरो जस्स य वयणम्मि बहए भेओ । चिअभवणसड्डगाणं' साहारणदव्वमाईणं ॥ १५२ ॥ [ सो.] सो न० ते गुरु युगप्रधान न कहीहं, जेहनइ वचनि उपदेशि एतलांनु भेद थाइ । चैत्यभवन देहरां अनइ श्रावक तथा साधारण द्रव्य देवद्रव्यादिकनी जूजूआई थाई, माहिमाहि विरोध ग्०पडइ ॥। १५२ ।। [ जिं. ] जे गुरु जुगप्रवर नही, जस्स य जेह गुरुनइ वचनि चैत्यभवन देवगृह तेहना द्रव्यहूई अनइ श्रावकना द्रव्यहूई वली साधारण द्रव्य भेद भिन्नता वर्त्त ॥ १५२ ॥ [ मे. ] ते गुरु युगप्रधान न कहीहं, जेहनइ वचनि एतलांनउ भेद थाइ । चैत्य देहरा, श्रावक तिम साधारण द्रव्य देवद्रव्यादिकनी जूजूआइ थाइ, माहोमाहि विरोध पडइ ॥ १५२ ॥ . [सो.] वली कवि गुरुनी भक्ति कहइ छइ । [ जि.] अथ मिथ्यात्त्वन माहात्म्य बोलs | संपर पहुवणेण वि जाव न उल्लसइ विहिविवेअत्तं । 20 ता निबिडमोहमिच्छत्तगंठिआदुट्टमाहप्पं ॥ १५३ ॥ १ भुवण २ जि. वियणेण. ३ जिं. विहिविवेगत्तं.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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