SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रण बालावबोध सहित १२७ [सो.] धर्मनी आस्था जीवहूई पाप फेडई। ए वात कहइ छइ। [जि.] जइ दुष्ट भारेकर्मा जीवने हिययइ जिनधर्मोपदेश न लागई तउ पछइ किसुं जिनधर्म प्रमाण ? इसी शंका फेडिवा. भणी जिनधर्मनउं प्रमाण बोलइ । दूरे करणं दूरम्मि साहणं तह पभावणा दूरे। जिणधम्लसदहणं पि तिक्खदुक्खाई निवइ ॥१२७॥ [सो.] दूरे० श्रीजिनधर्मनउं करिवउं आराधिवउं ते दूरि परहउं छइ अनइ जिनधर्मर्नु साहणं कहिवउं, थापिवळं, अनेरानइ हिअइ आणिवउं तेहइ परहउं छउ। तथा श्रीजिनशासननी प्रभावना० लोकमाहि रूडउं भवाडिवउं, बाह्य लोकइ पाहिँ वखणाविq तेहइ परहउं छउ । तेह एके जीव तीर्थंकरपदवी .गणधरपदवी केवलज्ञान . मोक्ष : लगइ ऊपार्जइ । जिणधम्म० बीजउं काई म करिस्यउ। जिनधर्मनउं सद्दहण मात्र करइ, आस्थाइ जि मनि आणइ तेउ तिक्खदुक्खाई तीक्ष्ण गाढां पोतनां पाप नीठवइ क्षपइ, हलूअकर्मउ थाइ ॥ १२७ ॥ 15 [जि.] जिनधर्मनळं करणं करिवउं दूरि वेंगलउं हुउ अनइं जिनधर्मनउं साधन तपश्चरणादि प्रमाणि चडावण पुण दूरि हउ। तह तथा जिनधर्मनी प्रभावना द्रव्य वेची जिनशासनि प्रोत्सर्पणा तेहीइ वेगली छइ। श्रीजिनधर्म सांचउ रूडउ खरउ। इसुं जिनधर्मनउं श्रद्दधानई तीक्ष्ण तीत्र दुक्खहूई निराकरइ निवइ फेडइ ॥ १२७ ॥ ३० १ आस्थाइ. २ आ 'फेडइ' शब्दथी मांडी वाकीनो बालावबोध के १२७ मी गाथा सो.नी बीजी प्रतमा नथी. मात्र आ गाथा उपरना बालावबोधना छेला बे शब्दो 'हलूअकर्मउ थाइ' तेमां छे. अर्थात् १२७ मी गाथा अने ते उपरना बालावबोधने स्थाने सो.नी बीजी प्रतमा मात्र आटलुं छे–'धर्मनी आस्थाइ जीवद्इं पाप [वच्चेनो बधो पाठ पडी गयो छे] हलूअकर्मउ थाइ.' :..:
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy