SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्टिशतक प्रकरण एगं० एक तां प्रिय अभीष्ट मूउ ते दुःख । बीजउं वली शोक करी पाप ऊपार्जी नरगि' जाइ । बीजउ ते दुःख । दृष्टांत कहइ छइ । एक तां ऊंचा माला थकउ पडिउ । बीजउ लडइ' करीइ माथइं आहणिउ । ए लोकिक दृष्टांत ॥ १११ ॥ 5 ११२ [जि.] अज्ञानी लोक शोकि करी कंदी रोई सिर माथउं उअर पेट पुण कूटीनां आपणपउं नरगि क्षिपई घालई । तं पि० ते कुत्सित स्नेहपणाहूई धिक्कार पडउ ॥ ११० ॥ एक तउ प्रिय वाल्हउ तिहनउं मरणदुःख आगइ छइ अनइं बीजउं आपणपउं नरगि क्षिप घालीइ । एक तउ माल हूंतर पडण 10 पडिवउं । अनेरउं वली ऊपरि माथइ लउडानउ घाउ । इणि कारणि शोक न करिवउ, जिम नरगि न पीडाई ॥ १११ ॥ [मे.] स्वजनादिकनइ मरणि ं शोक आनंद करीनइ, शिर कूटीन, हीउं ताड़ीनइ आपणपरं नरगनइ विषइ क्षिपइं । तर तेहर कुस्नेहनई धि धिक्कार हुउ ॥ ११० ॥ एक तां प्रियतम वाल्हा तेहना मरणनउं दुक्ख । बीजउं आपणपउं नरकनइ विषइ क्षेपइ । तउ ए वात साची हुई । एक माला हूंतउं पडिवउं । वली लकुटनउ घाउ माथइ वाजइ ॥ १११ ॥ 15 [ सो.] साचा धर्मना धणी गुरु नइ श्रावकइ दुर्लभ । ए बात कहइ छंइ । 20 [ जि . ] ' स्नेहमूलानि दुःखानि ' इसुं स्थापी सांप्रत दुःखमा कालनउं स्वरूप कहइ । १ नरकि. २ लउडइं. ३ गुरुइ.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy