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षष्टिशतक प्रकरण
.. [सो.] वन्नेमि० ते नारकीइ वर्णवउं, जे नारकीनां दुःख सिद्धांतनइं बलिई जाणीनइ स्मरतां हुंतां भव्वाण भव्य जीवहई हरिहर विष्णु ईश्वरादिकना सरीषीइ ऋद्धिनउ विस्तार उद्घोसं ऊकांटउ करइ । जाणइं एह रिद्धि लगइ जीव पाप ऊपार्जी नरगि 5जाइं। एह्वां दुःख प्रामइं। इम चीतवतां भय लगइ सयर धूजइं । संसारना सुख उपरि वैराग्य ऊपजइ ॥९५॥
[जि.] नारकीइ वर्णवउं हउं, जहां नारकीना दुःख संभारता स्मरता हूंता भव्वाण भव्य जीवहूई हरि विष्णु हर ईश्वर तेहनी
ऋद्धि समृद्धि लक्ष्मीनउ विस्तार उद्धोसं उद्धर्षण रोमांच जणइ 1०करइ । एतलई एवहां कांई नारकीहूई दुःख छइं, जे दुःख संभारताई ज हूंतां अति भय लगी कंप ऊपजावइं । कंप लगी रोमांच ऊपजइ । अनइ जि को संसारनां दुःख हूंतउ बीहइं ति ए न करइं । तिणि कारणि अम्हे नारकीनां दुःख संभारता हूंतां पाप न करां । तिह भणी नारकी वर्णवां । जिम चोरनां बंधमरणादिक दुःख देखी साधु माणस लगाई चोरी अन्याय न करई ॥९५॥
[मे.] ते नारकीइ वर्णवीइं, जे नारकीनां दुक्ख संभारतां हूंतां भव्य जीवहूई हरिहरांदिक देवतानी ऋद्धिनउ विस्तार उद्घोस कहतां रोमांच ऊकांटउ करइ । जाणइ एह रिद्धि लगी नरगि दुःख पांमीस्यई ॥९५॥
20 [सो.] केतलाइ उपदेशमालानु अर्थ मानइ, पुण करई नहीं । तेह आश्री कहइ छइ ।
[जि.] अथ बिहुँ गाथाई श्रीउपदेशमाला वर्णवई । १ नरकि. २ श्रीउपदेशमालनउ,