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________________ भ्रण बालावबोध सहित [सो.] अहवा० अथवा जे सुजन हुइं ते सविहुं ऊपरि सरलस्वभाव हूंता किहांइ विकल्प नाणइ । रूडा' नइ विरूआइ सविहुं ऊपरि हित चीतवइ । छडूंत. जे द्विजिह्व साप विषना भर समूह छांडइं गरलइ जि मूकई ते ऊपरि उत्तम दयाइ जि करइं। जे चाड दुर्जन कुवचन बोलई ते ऊपरि उत्तम 'ए बापडउ किमइ पुण्य 5 प्रामिसिइ ? ' इसी दया जि करई ॥ ६३ ॥ [जि.] अथवा सरलस्वभाव स्वजन सगा सर्वत्र अविकल्प विकल्परहित हुई। जिम लोक आपणां लोचन ऊपरि विकल्प भेद आंतरउं कांई न करइं। तथा ते वली सर्परूप द्विजिह्वहूइं करुणा दया करई । जिम श्रीपार्श्वनाथि सर्प ऊपरि दया कीधी ॥ ६३॥ १० [मे.] अथवा सरलस्वभाव जे स्वजन ते सघले किहांई विकल्प नाणई । समभाव आणइं । विषना भर गरल छांडई छई जे द्विजिह्व सर्प तीहइं ऊपरि करुणा आणइं । जे चाड दुर्जन कुबोल बोलई तेहइ ऊपरि उत्तम चीतवई जि 'ए बापुडउ किमही पुण्य पामिस्यइ ?' इसी जे दया करई ॥ ६३ ॥ ... [सो.] सम्यक्त्व गाढू दुर्लभ छइ । ए वात कहइ छइ । [सो.] अथ विरला केई एकहूई सम्यक्त्व छइ । न सघलाईहूई । इसुं कहइ। [मे.] सम्यक्त्व गाढउं दुर्लभ छइ । ए वात कहइ । गिहवावारविमुक्के बहुमुणिलोए वि नस्थि सम्मत्तं । २० आलंबणनिरयाणं सड्ढाणं भाय किं भणिमो॥६४॥ १ रूडाइ. २ 'जि' नथी. ३ तेहइ. ४ दया. ५ जि. मे. गिहि. ६ जि. निलयाणं.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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