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________________ प्रण बालावबोध सहित सिद्धांत तेहनी चेतना नाठी । अथवा धिन्धिःकारक कर्मइजिनइ हु। जेह भणी जिन वीतराग लाधउइ अणलाधउ । कांइं ? उत्सूत्र बोलतां वीतराग अणओलषिउ हूउ ॥ ६० ॥ [सो.] केतलाइ मूर्ख पंडितंमन्य हूंता सूधा धर्मना करणहार रहइ हसइं । ए वात कहइ छइ। - [जि.] अथ जिनधर्म हास्यस्थानक नही । इसुं कहइ । . . [मे.] केतला सूधा धर्मना करणहारनई हसइं । ते कहइ । इअराण वि उवहासं तमजुत्तं भाय कुलपसूआणं । ; एस पुण कोवि अग्गी जं हासं सुद्धधम्मम्मि ॥ ६१॥ ... [सो.] इअराण० इतर अधर्म मूर्ख तेहर्नु जं हासुं० कीजइ, हे भ्रात बांधव ! कुलीन जे पुरुष छइ तेहनइ अयुक्तउं। कुलीन रहई तेहइ करिखा' नावई । एस पुण० ए पुण मोटउ आगि गाढउ विरूउ । जंहासं० जं शुद्ध निष्कलंक धर्मना आराधक रहई हसीइ ॥ ६१॥ . , . [जि.] हे भाय हे भ्रातः-! इअराण वि मूर्षइनउं उपहास्याऽ जे हुइ ते उपहास्य कुलप्रसूतहूई अयुक्तउं । एतावता अकुलोत्पन्ननउं हासउं मूर्षई न करई । एषः पुनः कोऽपि अग्निः। आ कोई वली आगि जउ शुद्धइ निर्मलइ धर्मि हासउं ॥ ६१ ॥ [मे.] इतर पामर लोक तेहनूइ हासउं कुलना प्रसूत तेहनई हे बांधव ! युक्तउं नहीं। ए कोई मोटउ आगि जे सूबा जिनधर्मनउं20 हासउं कीजइ ॥ ६१॥ १°मन्यइ. २ तीहनुं ३ हासं. .४ जेह. ५ कहिवा, . .
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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