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श्रामण्योपनिषद्
अंग-पूजा
क्षमाधर्मः कोपादि-रहितां सारां सर्वसौख्याकरां क्षमाम् ।
पूजया परया भक्त्या पूजयामि तदाप्तये ॥१॥ ॐ ह्रीम् उत्तमक्षमादिदशधर्मांगाय नमः जलाद्ययं निर्वपामीति स्वाहा । उत्तम-खम मद्दउ अज्जउ सच्चउ, पुणु सउच्च संजमु सुतउ। चाउ वि आकिंचणु भव-भय-वंचणु बंभचेरु धम्मु जि अखउ ॥२॥ उत्तम-खम तिल्लोयह सारी, उत्तम-खम जम्मोदहितारी । उत्तम खम रयणत्तय-धारी, उत्तम-खम दुग्गइ-दुह-हारी ॥३॥ उत्तम-खम गुण-गण-सहयारी, उत्तम-खम मुणिविंद-पियारी। उत्तम-खम बुहयण-चिंतामणि, उत्तम-खम संपज्जइ थिर-मणि ॥४॥ उत्तम-खम महणिज्ज सयलजणि, उत्तम-खम मिच्छत्त-तमो-मणि। जहिं असमत्थहंदोसु खमिज्जइ, जहिं असमत्थहं णउ रूसिज्जइ ॥५॥ जहिं आकोसण वयण सहिज्जइ, जहिं पर-दोसुण जणि भासिज्जइ। जहिं चेयण-गुण चित्त धरिज्जइ, तहिं उत्तम-खम जिणे कहिज्जइ ॥६॥
घत्ता
इय उत्तम-खम-जुय णर-सुर-खग-णुय केवलणाणु लहेवि थिरु । हुय सिद्ध णिरंजणु भव-दुह-भंजणु अगणिय-रिसि-पुंगव जि चिरु ॥७॥
ॐ ह्रीम् उत्तमक्षमादिदशधर्मांगाय पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा ।