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इन अनुमानों द्वारा कम से कम १५ वर्ष की अवस्था में आप की दीक्षा मान ली जाय, और करीब १५ साल आप का पूर्ण विद्याभ्यास का मानें तो भी आप का जन्म १३वीं शताब्दी के प्रारम्भ काल में मानना युक्तियुक्त है। अस्तु।
. जन्म का, दीक्षा का तथा सूरिपद आदि का समय पूर्ण रूप से निश्चित न होने पर भी यह बात तो निःसन्देह सिद्ध होती है कि आप तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ और मध्यकाल से लेकर शताब्दी के लगभग अन्त तक में अपने अस्तित्व से भारतवर्ष के मुख्य मुख्य देशों को और जैनशासन को देदीप्यमान कर रहे थे। पाठकों को यह भी ध्यान रहे कि आप के सिवाय एक और भी इस नाम के श्री सोमप्रभसूरि हो गये हैं, परन्तु उनका समय प्रस्तुत श्री सोमप्रभसूरि से लगभग १५० वर्ष बाद शुरु होता है, जो कि भगवान् महावीर की पट्टपरम्परा में ४७ वें पट्ट पर हुए हैं। (२) विद्वता – श्री सोमप्रभसूरि जैन-जैनेतर शास्त्र के अद्वितिय विद्वान थे, साथ ही साथ व्याकरण, काव्य, कोष तर्क अलंकारादि विषयों के पूर्ण ज्ञाता थे। इसमें तो कोई प्रकार का संदेह ही नहीं कारण कि इस बात की साक्षी में उनके उपलब्ध ग्रन्थ ही प्रमाणभूत हैं। गुर्वावली आदि में बहुत संक्षिप्त में वर्णन मिलता है कि वे षड्-दर्शन के पूर्ण अभ्यासी और प्रथम तार्किक थे, परन्तु षड्दर्शन विचारात्मक कोई भी स्वतन्त्र ग्रन्थ उनका बनाया हुआ देखने में नहीं आता और यह कोई खास नियम नहिं है कि जो विद्वान जिस विषय का पूर्ण पांडित्य रखता हो, वह उन उन विषयों पर ग्रन्थ अवश्य लिखे ही। परन्तु आपको व्याकरण और काव्य में असीम शक्ति थी, यह बात आप के उपलब्ध ग्रन्थों से असन्दिग्ध ही है। आप का बनाया हुआ 'शतार्थकाव्य' जिसकी स्वोपज्ञ टीका में आपने प्रत्येक श्लोक के उपर अलग-अलग १०० सौ अर्थ कर दिखाये हैं। ___इसी कृति को लेकर आप अपने समकालीन विद्वानों द्वारा शतार्थिक पद से विभूषित किये गये। और पिछले विद्वानों ने भी आप का 'शतार्थिक' उपनाम के साथ ही परिचय कराया है। ५१वे पट्टधर श्री मुनिसुन्दरसूरि कृत गुर्वावली का यह उल्लेख है कि - 'सोमप्रभो मुनिपतिर्विदितः शतार्थी, ततः शतार्थिकः ख्यातः श्री सोमप्रभसूरीराट्।' इस ग्रन्थ के अवलोकन से आप का संस्कृत साहित्य में कितना अद्भूत पांडित्य था उसका अनुमान स्वयं हो जाता है। (३) ग्रन्थ – शतार्थिक श्री सोमप्रभसूरिविरचित जो ग्रन्थ उपलब्ध हैं, उनके नाम ये हैं - (१) कुमारपाल प्रतिबोध, (२) शतार्थकाव्य, (३) श्रृंगारवैराग्यतरंगिणी, (४) श्री सुमतिनाथ चरित्र, (५) सिंदूरप्रकर - प्रस्तुत ग्रन्थ १०० श्लोकबद्ध