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ग्रन्थकार का परिचय (१) समय - प्रस्तुत ग्रन्थ के निर्माता शतार्थिक श्री सोमप्रभसूरि का समय विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का प्रारम्भ माना जाना निम्नोक्त प्रमाणों से सिद्ध हो सकता है। आपके जन्म, दीक्षा, सूरिपद आदि के समय का उल्लेख स्पष्टतया कहीं नहीं मिलता, तथापि यह मालूम होता है कि - आप का जन्म प्राग्वाटज्ञातीय जैन महाजन वंश के उच्च कुल में हुआथा। आप के पिता का नाम सर्वदेव और पितामह (दादा) का नाम जिनदेव था, जो कि किसी राज्य के मन्त्री आदि माननीय पद पर नियुक्त थे। श्री सोमप्रभसूरि की दीक्षा कुमारावस्था में ही हो चूकी थी। पट्टावली में आप का भगवान् महावीर से ४३वाँ पट्ट माना गया है। आपके पट्ट पर ही आयंबिल व्रत के धारक वर्तमान तपागच्छ के प्रवर्तक श्री जगच्चंद्रसूरीश्वरजी हुए। जिनकी इस कठिन तपस्या के कारण बडगच्छ का नाम परिवर्तन हो संवत् १२८५ में तपागच्छ नाम हुआ और वे तपागच्छ के प्रथम सूत्रधार कहलाए। इस समय में लगभग आप का अन्तिम समय माना जा सकता है, और आपने इस ग्रन्थ की प्रशस्ति में अपना परिचय उस प्रकार दिया
अभजदजितदेवाचार्यपट्टोदयाद्रि धुमणि विजयसिंहाचार्यपादारविन्दे । मधुकरसमतां यस्तेन सोमप्रभेण, प्रचि मुनिनेत्रा सूक्तिमुक्तावलीयम् ॥१०॥
इससे स्पष्ट मालूम होता है कि ग्रन्थकारश्री अजितदेवसूरि के शिष्य श्री विजयसिंहसूरि के शिष्य थे और श्री विजयसिंहसूरि परमार्हत कुमारपाल प्रतिबोधक श्रीमद् हेमचंद्राचार्य के समकालीन थे। ग्रन्थकर्ता के समय में महाराजा कुमारपाल और श्रीमद् हेमचंद्राचार्य के जीवन की विशिष्ठ घटनाएँ नवीन रूप में ही थी। इन्ही ताजी घटनाओं को लेकर आपने कुमारपाल प्रतिबोध ग्रन्थ की रचना की है। कर्ता ने इस ग्रन्थ में रचना का समय विक्रम सं. १२४१ आषाढ शुक्लाष्टमी रविवार का दिया है।
यथा-शशिजलधिसूर्यवर्षे, शुचिमासे रविदिने सिताष्टम्वास् । जिनधर्मप्रतिबोधः क्लूप्तोऽयं गूर्जेन्द्रपुरे ॥
उपरोक्त प्रमाणों से यह निश्चय किया जा सकता है कि परमार्हत महाराजा कुमारपाल की विद्यमानता के एतिहासिक प्रमाण १२२९-३० तक के मिलने से १०-११ वर्ष बाद इस ग्रन्थ की रचना इस समय से पूर्व की भी विदित होती है।