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________________ इष्टोपनिषद् પરિશિષ્ટ-૨ १५१ कर्ता हुं सादडीनो त्यां छे संबंध जुदो कह्यो; ध्यान-ध्येय स्वयं आत्मा त्यां संबंध कयो रह्यो ? ॥२५॥ ममताथी जीवने बंध, मुक्ति निर्ममता थकी, माटे सर्व प्रयत्ने ए, ध्यावो निर्ममता नकी ॥२६॥ निर्मम एक हुं शुद्ध, ज्ञानी योगीन्द्रगोचर; सर्वे संयोगी भावो ते, स्वात्माथी सर्वथा पर ॥२७॥ दुःखना डुंगरो वेदे, जीवो संयोग कारणे; मन वाणी तनु कर्मे तनुं संयोग सर्वने ॥२८॥ मने ना मृत्यु, भीति शी ? मने ना रोग, शी व्यथा ? ना हुं तरुण, ना वृद्ध, बाल ना पुद्गले बधां ॥२९॥ मोहथी भोगवी छोड्यां, पुद्गलो सौ फरी फरी, हवे ए एंठमां मारे, ज्ञानीने शी स्पृहा वळी ? ॥३०॥ कर्मो कर्महित ताके जीवो इच्छे स्वश्रेयने; स्व स्व प्रभावयोगे सौ, साधे कोण न स्वार्थने ? ॥३१॥ देहादि अन्यना अज्ञ उपकारे शी वर्तना ! लोकवत् स्वार्थ साधी ले, त्याज्य अन्योपकार हा ! ॥३२॥ गुरुबोधे, स्वअभ्यासे, स्वानुभूतिथी जाणता; आत्मा ने अन्यनो भेद, ते मुक्ति-सुख मानता ॥३३॥ स्वयं सत्नी करे इच्छा, स्वयं ज्ञापक श्रेयनो; स्वयं स्वश्रेयमां वर्ते, स्वयमेव गुरु स्वनो ॥३४॥
SR No.022053
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPujyapadswami, Kalyanbodhisuri
PublisherJinshasan Aradhak Trust
Publication Year2010
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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