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________________ १५० પરિશિષ્ટ-૨ इष्टोपदेशः आयु-भोगे वधे लक्ष्मी, धनिको तोय ते चही; धनार्थे आयु गाली दे, प्राणथी इष्ट श्री तहीं ॥१५॥ दान के पुण्यना नामे, निर्धनो धन संग्रहे; तो ते 'स्नाने थशुं शुद्ध' चही पंके वृथा पडे ॥१६॥ पमाये कष्टथी भोगो, पाम्ये तृप्ति न आपता; त्यागतां दुःख दे अंते, तेमां सुज्ञो शुं राचता ? ॥१७॥ जेना संगे शुचि एवा, पदार्थो अशुचि बने; ते दुःखमूर्ति देहार्थे, भोगनी चाह शुं तने ? ॥१८॥ आत्माने श्रेयकारी जे, देहने अपकारी ते; । कितु देहोपकारी जे, आत्माने अपकारी ते ॥१९॥ दिप्य चिंतामणि एक, काचनो कटको बीजो; मळे जो ध्यानथी बन्ने, विवेकी इच्छशे क्यो ? ॥२०॥ स्पष्ट स्वानुभवे व्यक्त, अक्षयी देहव्यापक; आनंदधाम आ आत्मा, लोकालोक-प्रकाशक ॥२१॥ चित्त-एकाग्रता साधी, रोकी इन्द्रिय-ग्रामने; आत्माथी संयमी ध्यावे, आत्ममां स्थित आत्मने ॥२२॥ ज्ञानीना आश्रये ज्ञान, अज्ञथी अज्ञता मळे; 'होय जेनी कने जे ते, आपे' लोकोक्ति ए फळे ॥२३॥ परीषहो जणाये ना, मग्न अध्यात्ममां थतां, आस्त्रवो रोकती थाये कर्मनी शीघ्र निर्जरा ॥२४॥
SR No.022053
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPujyapadswami, Kalyanbodhisuri
PublisherJinshasan Aradhak Trust
Publication Year2010
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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