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________________ .. . . 'M साधार्थ ॥ (३१) सार छे धर्म नो मूल माटे तेनो सार ज्ञान छै ते जापावा माटे, तेनो सार चारित्र छे निराश्रव माटे, तेनो सार निवार्ण छे सर्व क्लेश मिटवा माटे. - २९७ वें प्रश्न में ‘चत्तारिय' इत्यादिक गाथा भाई हैं उन का अर्थः . संसार में चउद पूर्वी च्यार वार श्राहारिक शरीर करे अने एक भवे बे वार करे ... । आहारिक़ शरीरी आहारिक शरीर, करवा को अन्तर पडे तो जघन्य एक समयपछे करे माटे एक समय नो अन्तर पडे उत्कृष्टो अन्तर जाव छ मात:नो पड़े भने पाहारिक शारीरी एक समें लाधे तो उत्कृष्ट नव हजार. २. चायक १ क्षयोपशमिक २ वेयगः। उपशामिक ४ सास्वादन ५ ये पांच प्रकार नो सम्यक्त परूप्यो छे जिनवरेन्द्र तीर्थकरे. ३. सूक्ष्म काल है तेथी पण अधिक सूक्ष्म क्षेत्र है अंगुल मात्र श्रेणी में आकाश: प्रदेश निकालते अम
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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