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(२२०) ॥ रत्नसार ॥
तथा वली पांचे अनुव्रत श्रावक ने होइ तेहनों विवरो लिखिये छैः- स्थूल बेइंद्रियादिक त्रस जीव निर्पराधे उपेत करणी संकल्पी न हणे, ए
जगतमा जीवना बे भेद कह्या छे. एक थावर, बीजा प्रस. तेमा थावरना वली सूक्ष्म,बादर ए बेभेद छे तेमां पण सूक्ष्मनी हिंसा नथी. कारण अति सूक्ष्म जीवना शरीने बाह्य शस्त्रनो घाव लागतो नथी, तेमने स्वकाय एटले पोतानी जातीना जीवोथी घात पात छे. पण बादर नथी एमाटे अहींयां सूक्ष्म शब्दथी पण जाणवू के थावर जीव, पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु, वनस्पतिरूप बादर ए पांचे थावर तेमने सूक्ष्म कहीए . अने थूल एटले बेंद्रि, तद्रि, चौरेंद्रि, पंचेंद्रिरूप जाणवा ए जीवना मूल भेद बे छै तेमां सर्व जीव पाव्या. तेओ सर्वनी त्रिकरण शुद्ध रक्षा करे छे. तेमाटे वीश विश्वानी दया मुनि ने छे.
पण श्रावकथी तो पांच थावरनी दया पली शकाय नहीं. सचित्त अहारादि कारणथी अवश्य हिंसा थाय छे. माटे दश विश्वा गया अने दश रहा.एटले एक त्रस जीवनी दया राखवाना दश रह्या तेना पण वली बे भेद छे. एक संकल्प. बीजो आरंभ.तेमां प्रारंभ करीने जे त्रस जीवनी हिंसा थइ जाय ते छोडी न जाय तेमाटे बे हिंसामां एक संकल्प हिंसानो त्याग अने आरंभ हिंसानी तो जयणाछे, एम गणतां फरी दशमांथी अडधा गया एटले पांच विश्वा रह्या, एटले संकल्प करी त्रस जीव नहj. एमां पण जीवना बे भेदछे. एक सापराधी जीव अने बीजा निरअपराधी जीव छे. तेमां जे निरपराधी जीवछे तेमने न हj. अने