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॥ रत्नसार ॥ (२१९) मन वचन काय नु कुशल पणों ३, एवं २५, सीतादि का पीडानो सहवो २६, मरणांत उपसर्ग:सहवो एवं २७. एवं सर्व मिली १०८ गुण पंच परमेष्टी ना, तेहने नवकरवाली कहिये. ए अर्थ. इति.
२९४. २९५. अथ साधु ने १०० सोये वसा (विश्वा) पंच महा व्रत पालै छै ते किम? इति प्रश्नःपहिलो प्रणातिपात श्रावक नी अणु व्रत तिहां दया जावजीव सवा वसा नी होइ. पांच थावर ते सूक्ष्म ने बादर एवं दस ते पर्याप्ता ने अपर्याप्ता एवं २०. इम एणी रीतें साधु ने सोये वसाई महाव्रत पाले. श्रावक ने पांच अनुव्रत मिली ६।सवा छे वसा नो पालै. इत्यर्थ. *
___ *श्रा प्रश्नमांग्रन्थकर्ता ए जे भेदाभेद कीधा छै अने केतलीक जगो आंकडा मूक्या छे तेमांही थी केतलाक समजवा मां आवता नथी ते माटे या प्रश्नजेम लखेली प्रत मां हतो तेमज छापी दीडूं छे. श्री सम्यक्त्व मूल बारव्रत नी टीपमा आ बाबत लिख्युं छै ते आ मुजब छैः--
साधुने वीश विश्वानी दयाछे,अने गृहस्थने सवा विश्वानी दया छे. ते केवी रीते तेनो विवरो लखीए छैए.
॥ गाथा ॥ जीवा सुहमाथूला । संकप्पारंभाभवेदुविहा। सावराह निरवगहा । साविरकाचेवनिरविरका ॥ १॥ अर्थ