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________________ (२१६) ॥ रत्नसार ॥ मरण ते समस्त संपूर्ण श्रायु भोगवी नें मरै २. अंतिय मरण ते नरकादि गति नो छेहलो मरण वली ते ( फरि ) नरके न मरै ३. बलीय मरण ते व्रत परिणाम भोगे जे व्रतीनो मरण ते होइ ते ४. वसदृ मरणं च ते इंद्र ने परवश पणे मरै, दीप शिखा देखी पतंग नी परे ५. भोसल्ल मरण लज्जादिक थी शल्य राखी मरै, लक्ष्मणवत् ६. तदभव मरण ते चर्म शरीरी थइ मरे ७. बाल मरण ते अविरति मिथ्यात्वी ना मरण ते ८. पंडिय मरण ते व्रती समकितीना मर ग ९. मिश्रंसंते मश्रमरण ते देशविरतिश्रावक ने मरण १०. छउमथ मरण छद्मस्थ चारित्रीया ना मरण ११. केवल मरण ले केवलज्ञानी नुं मरण १२. विहास मरण ते कारण पड़े गले फांसी तथा शस्त्रै तथा विषै योगे मरै १३. गृधीय पीठ मरण ते गृध पंखिया ये कारण पडे शरीर खवरावी मरै १४. भत्त परिणाम मरण ते चतुर्विध अहार ना त्याग थी प्रति क्रमणा सहित मरै १५. इंगणी मरण ते नियमि भूमिका नें विषै च्यार अहार
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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