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॥ रत्नसार ॥ (२१५) नरकै उत्कृष्टै आउषै जाइ. एतले एक पूर्व कोडी ने ३३ सागरोपम थाइ. ___ २८९. हिवै आठै ज्ञान नो आंतरो कहै छै:मति अज्ञान नो आंतरो जघन्य थी अंतर्मुहुर्त नो होइ, उत्कृष्टै अर्द्ध पुद्गल परावर्त माठेरो होइ.इम एणे प्रमाणे श्रुत ज्ञान, अवधि ज्ञान, मन पर्यव ज्ञान नो पण आंतरो जाणवो. केवल ज्ञान नो आंतरो नथी.
हिवै मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान नो आंतरो जघन्य तो अंतर्मुहूर्त उत्कृष्टौ सागरोपम ६६ झाझेरो
होइ.
हिवै विभंग ज्ञान नो अंतर कहै छैः- जघन्य तो अंतर्मुहुर्त्त, उत्कृष्टै तो वनस्पति नो काल. ए भाव. इति.
२९०. हिवै १७ प्रकार ना मरण श्री उत्तराध्ययन टीका मध्ये कह्या छै ते लिखिये छैः-प्रथम आवीची मरण ते समये २ आयु कर्म नां दल खेरवै छै १. उही