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॥ रत्नसार ॥
मांहे न आवै ते माटै बादर सूक्ष्म कहिये. ३. चोरिंदिया कहतां नयन विना बाकी च्यार इंद्रीये ग्रहीए ते सूक्ष्म बादर पुद्गल कहिये. श्या माटै ? जे गन्ध, रस, फरस, शब्द ना पुद्गल श्रावता न देखिये ते माटै सूक्ष्म, अने गंधे रसे फरसे शब्द जाणिये तै माटे ए ज्ञातिना पुद्गल ने सूक्ष्म बादर कहिये ४. कमपाउगा कहतां पांचमा पुद्गल ते कर्म नी वर्गणाना ते दृष्टे नं श्रावै ते माटै चोफासिया सूक्ष्म पुद्गल कहिये ५. छठा सूक्ष्म सूक्ष्म ते कम्मातीया कहतां कर्मातीत एक छूटो परमाणु पुद्गल ते सूक्ष्म सूक्ष्म कहिये ६. ए रीतें छः प्रकार ना पुद्गल संसार मध्ये व्यापी रह्या छै जिम छ कायना जीव व्यापी रह्या छै तिम ए जाणवा. इति.
२५८. ज्ञाना वर्णादिक कर्म नो बन्ध उदय उदीरणा सत्ता केतला गुण ठाणा ताई होय तेहनों विवरों लिखिये छै. ज्ञानावर्णी कर्म नो बन्ध गुण ठाण १० मां ताई. दर्शनावर्णी नोबन्ध दसमां तांई. वेदनीनो बन्ध