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॥ रत्नसार |
जेही न पतो त साइं परीणामो ( उवयंति चयंत्रिय पुणोवी तथैव तथैव ) एणे न्याये वनस्पति कायना जीव निर्लेप न थाइ ए भाव. . ... १६५. एक सौ पैसंठमो प्रश्नः-तथा बादर अपकाय बारमा देवलोक सुधी कही छै. तथा बादर तेउ काय त्रीछी अढी विप सुधी कही छै, ऊंची मेरु पर्वत नी चूलीका सुधी कही.
१६६. एकसौ छासठमो प्रश्नः- तथा सातमी छठि नरगै कुंभी मां उपजवू नथी तिहां आलिया छै. जिम नदी ने भेखडे बिल होई तिम तिहां आलिया छै. तेतले सूला छै ते ऊपरि शरीर वृद्धि थाइ. तिवारे पड़े. इम सांभल्यो छै. ए भाव. - १६७. हिवै साधु ना १४ चउद उपगरण ते किहा ते एकसौ सणसठमो प्रश्नः
गाथा. पत्तं पत्ता बंधो पाय ठवणं चा पाय केसरिया।