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॥ रत्नसार ॥
वीस एकवीसमा विचें, संयम केवल देह ॥ ८॥ भरता रेवत दस मिलै, मध्यम संपद तीस । चौबीसमा जिन शिव गया, विदेह विचरै बीस ॥९॥ आगत चौबीसे सातमा, आठमा विचे निरवाण । विरह पडै सहु क्षेत्र में,अठमन होइ जिन भाण ॥१०॥ अाठमाथी नथी वली, एम सितरकादिक थाइ । परंपराई पूर्व जिम कही, लेवी एम सदाय ॥ ११॥ दस बीस एकण समै, जिनवर जनम कहात । भरतइरावत दिन हुदै, पांच विदेहे रात ॥ १२ ॥ आगमै इम भाखियो, चवण जन्म अध रात । भरतेरावत जान होय, दिव विदेह विख्यात ॥ १३॥ त्रीस सिंहासन सहू, दोइ मेरु पांचे लाधे। दो दो पूरब पश्चिमे, एक दक्षिण उत्तर साधे॥१४॥ च्यार जन्मै विदेह प्रते, पांच मिली ने वीस । भरतेरावते दस होय, एक समय जन्म लहीस॥१५॥ वीस २जन्में विदेहे सही, साठसो विजये पुराय । लाख चोरासी पूर्वायुत, सधनुष पांचसै काय॥१६॥