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॥ रत्नसार ॥
विवरो ए गाथा तणो, केवलियो संभाल के सित्तरसौ जिनवर होई, कहै केई काल ॥१॥ चढतो काल ओसरपेणी, वारे आठम जिन । एकसो सित्तर१७०जिनवर हुवै,इण परिसुणो सजना२। पांच विदेह मेलवी, साठसौ विजे. उपन। भरतइरवत दस मिलै, सित्तर सौ होइ जिन ॥३॥ पडते काले अवसर्पणी, सोलम जिन लगे हुँत ।' भरतारेवत जिन हुवे, साठिसो १६०विदेहे लहंत॥४॥ केवली केई वाल परण्या, वयणे एहिंसोय । . आठमा जिन थी सोलमा लगे,विरह विदेहे न होय॥५॥ सोलमा जिन साथे सहु, मुगति जाइ जिन भाण । विरहि समै सहु क्षेत्र में, उरह एहा पिछाण ॥ ६ ॥ सत्तरमा जिन होय भरह ,पंच ऐरवत मिलने दस । समये क्षेत्रे दस कह्या,लेहवा एह अवस्स ॥७॥ सत्तरमा जिन अठारस्सा विचें, जन्मे वीस विदेह ।