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लघ्वर्हन्नीति
यदि वादी साक्ष्य आदि से अपने दावे का समर्थन करने में समर्थ न हो पाये तो तब वह दण्डनीय है।
न शक्नोति नियोगं स्वमर्थी साक्ष्यादिहेतुभिः। समर्थयितुमेषः स्याद्राज्यदण्ड्यश्च प्रत्युत॥५४॥ मिथ्याभियोगी पक्षार्थं निहृते चेदमुं भयात्।
तदपि दण्ड्यतामायात् नियोगद्विगुणैर्धनैः॥५५॥ यदि अपने साक्ष्य आदि हेतुओं से वादी अपने नियोग (दावे) को प्रमाणित न कर सके तो बदले में वह राज्य द्वारा दण्डनीय है। यदि मिथ्या अभियोगी अथवा वादी भयवश छिपाता है तो वे दावे की दुगुनी राशि के दण्ड के पात्र हैं।
(वृ०) यदि नियमिताः साक्षिणोऽपि अनृतं वदन्ति तदा किं स्यादित्याह - __ यदि शपथ-ग्रहण के पश्चात् भी साक्षी झूठ बोलते हैं तब क्या होना चाहिये, इसका कथन -
वादिनः साक्षिणोऽसत्यं वदेयुश्चेन्नृपाग्रतः।
दण्ड्याः पृथक् पृथक् रूप्यैर्यथाशक्ति यथाकुलम्॥५६॥ वादी के साक्षीगण यदि राजा के समक्ष असत्य बोलें तो उनको उनके कुल तथा शक्ति के अनुसार अलग-अलग राशि से दण्डित करना चाहिए।
(वृ०) प्रत्यर्थिसाक्षिणोऽपि असत्याः स्युस्तदा किं करोति मन्त्री तदाहयदि प्रतिवादी के साक्षी भी झूठे हों तो मन्त्री क्या करे, उसका कथन
साक्षिणो वादिनः सत्या असत्याः प्रतिवादिनः। इषुवेदाग्नि समिषं सव्ययं स्वं नृपोऽर्थिने॥५७॥ दापयेदृणिना द्रव्यं साक्षिणस्ते पृथक पृथक।
दण्डनीयाः पुनर्जेवादेयाः स्युः साक्षिकर्मणि॥५८॥ वादी के साक्षी सत्य और प्रतिवादी के साक्षी असत्य बोलने वाले हों तो वादी को पाँच, चार तथा तीन प्रतिशत ब्याज सहित दी जाने वाली राशि और साथ में (वाद का) व्यय भी ऋणी द्वारा दिया जाना चाहिए और उन साक्षियों को भी अलग-अलग दण्डित करना चाहिए। उन झूठे साक्षियों को पुनः साक्ष्य के काम में नहीं लेना चाहिए।
(वृ०) कश्चित्साक्षी कृत्यस्वरूपं जानन्नपि मूको भवेत्तदा किंकार्यमित्याह
कोई साक्षी कृत्य - घटना के स्वरूप को जानता हुआ भी मूक रह जाता :: है तो क्या करना चाहिए, यह बताया -