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स्त्रीग्रहप्रकरणम्
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(परायी) ब्राह्मणी के साथ (व्यभिचार) करता हुआ ब्राह्मण हजार रजत (मुद्राओं) से दण्डनीय है। (परायी) क्षत्राणी के साथ (व्यभिचार) करता हुआ क्षत्रिय दो हजार (रजत मुद्राओं) से दण्डनीय है।
सेवेत वैश्यां चेद्वैश्यो दण्ड्यस्तुर्यशतप्रमैः।
शूद्रस्तु शूद्रासेवी चेन्निष्कास्यो' भूभुजा पुरात्॥१९॥ यदि वणिक् (परायी) स्त्री के साथ भोग करे तो (वह) सौ मुद्रा प्रमाण से शीघ्र दण्डनीय है। शूद्र (स्त्री) का भोग करने वाला शूद्र राजा द्वारा नगर से निष्कासित करने योग्य है।
शूद्रासेवकवैश्योऽपि दण्ड्यः स्याच्छतराजतैः। द्विजः शूद्रानुचारी चेन्निर्वास्यो नगराबहिः॥२०॥ शूद्र का सेवन करने वाला वैश्य भी सौ रजतमुद्राओं से दण्डनीय है। शूद्रा का सेवन करने वाला ब्राह्मण नगर से बाहर निष्कासित करने योग्य है।
चतुर्वर्णजनोद्भूतमपराधं समीक्ष्य चेद्। भूपो न वारयेद्दण्डतर्जनाताडनादिभिः॥२१॥ तदा सर्वापराधानां नृपः स्वामी भवेत्खलु।
ततो राष्ट्रेऽतिदुःखं स्यादीतिदुर्भिक्षमृत्युजम्॥२२॥ चारों वर्ण के लोगों द्वारा कृत अपराधों की समीक्षा कर यदि राजा दण्ड, तिरस्कार, ताड़ना आदि द्वारा (उन्हें) रोके नहीं तो उन सब अपराधों का स्वामी (कर्ता) राजा ही होगा। तब देश में ईति (छः प्रकार की), दुर्भिक्ष, मारी से अत्यन्त दुःख उत्पन्न होगा।
दुरिताकराशुचिगृहं संप्रेक्ष्य रमातनुं सुधीः कोऽत्र।
प्रीतिं कुरुते बीभत्साकर मशङ्करमत्यन्तदुर्गन्धम्॥२३॥ सङ्कट की खान, अपवित्रता का घर, वीभत्सता की खान, अकल्याण- कारी और अतिदुर्गन्धयुक्त, स्त्री-शरीर को देखकर कौन बुद्धिमान् इससे प्रेम करेगा।
सततमुदरं दृष्ट्वा कृमिमूत्रपुरीषपात्राबलानाम्।
विष्ठाघटमिव निन्द्यं त्यजत शरीरं विबुधोऽवश्यम्॥२४॥ निरन्तर कीड़ा, मूत्र, विष्ठा पात्र रूप स्त्रियों के उदर को देखकर बुद्धिमान् लोग मल के घड़े रूपी निन्दनीय शरीर का त्याग करें।
१. २.
चेन्निकाश्यो प १॥ ०मसङ्करमसन्त० प १, ०साकरमसन्त० प २॥