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वाक्पारुष्यप्रकरणम्
किसी वनवासी तपस्वी के द्वारा भी स्वीकर करने योग्य नहीं है (तो सामान्य जनों का क्या कहना) ।
ब्राह्मणक्षत्रविट्शूद्रा वदन्तः परुषं वचः । नृपेणात्महितार्थं वै दण्ड्या वर्णानुसारतः॥५॥
कर्कश वचन बोलने वाले ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को राजा द्वारा अपने हित के लिए (उनके) वर्ण के अनुसार दण्डित किया जाना चाहिए। faaisi aौर इत्युक्त्वा व्याक्रोशं क्षत्रियो यदि । कुरुते भूपतिर्दण्डं देयात्तं मुद्रिकाशतैः ॥६॥
'यह ब्राह्मण चोर है' इस प्रकार कहकर यदि क्षत्रिय निन्दा करता है तो राजा द्वारा उसे सौ मुद्राओं का दण्ड देना चाहिये ।
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वैश्याक्रोशे तदर्द्धं स्याच्छूद्राक्रोशे च विंशतिः । क्षत्राक्रोशे तु क्षत्रस्य दण्डः 'खाग्निमितैः पणैः ॥७ ॥
यदि (क्षत्रिय) वैश्य की निन्दा करे तो उसे (सौ मुद्रा का ) आधा अर्थात् पचास मुद्रा और शूद्र की निन्दा करने पर बीस मुद्रा और क्षत्रिय की निन्दा करे तो तीस मुद्रा से दण्ड दे।
१.
२.
३.
४.
ब्राह्मणेन द्विजाक्रोशे आकुष्टे क्षत्रियेऽपि च। एवोभयत्रास्ति चत्वारिंशत्प॒णैर्दमः ॥ ८ ॥
सम
ब्राह्मण द्वारा ब्राह्मण की निन्दा करने और क्षत्रिय की निन्दा करने पर दोनों स्थितियों में समान ही चालीस पण (मुद्रा) से दण्डित करना चाहिए।
वैश्याक्रोशे तु विप्रस्य पणानां पञ्चविंशतिः । शूद्राक्रोशे भवेत्तस्य दण्डस्तु दशभिः पणैः ॥ ९ ॥
ब्राह्मण द्वारा वैश्य की निन्दा करने पर पच्चीस पणों का और शूद्र की निन्दा करने पर दस पणों का दण्ड है।
वैश्येन ब्राह्मणाक्रोशे * मुद्रासार्धशतैर्दमः ।
क्षत्राक्रोशे तदर्द्धः स्याच्छूद्राक्रोशे ततोऽर्द्धकः॥१०॥
वैश्य द्वारा ब्राह्मण की निन्दा करने पर डेढ़ सौ मुद्रा (पण) दण्ड, क्षत्रिय की
०त्युत्सा भ १, भ २ प १, प २ ।।
कोशे प १ ॥
स्वाग्निसितै : भ १, खाग्निसितैः भ २, प २ ॥
क्रोसे प १ ॥