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राख, धूल, मल-मूत्र फेंकना, दूसरों को विकलाङ्ग करना, हिंसा करना, लड़ाई-झगड़ा, मारपीट, लाठी-रस्सी से पीटना, बाँधना, वन-उपवन नष्ट करना, आत्महत्या करना, पशु-पक्षी की हिंसा करना, दूसरों पर ढेला फेंकना या किसी भी प्रकार पीड़ा पहुँचाना, पत्थर आदि फेंकना दण्डपारुष्य कहलाता था। यह कृत्य अपने में घोर अपराध था। भ्रूण-हत्या एवं मनुष्य की बलि देने वाले को भी दण्डपारुष्य का अपराधी समझा जाता था।
दण्ड पारुष्य प्रकरण में भगवान नमिनाथ की स्तुति के बाद ब्राह्मण तथा क्षत्रिय आसन पर बैठने पर वैश्य-शूद्र को, हत्या का षडयन्त्र और वस्तुओं को नष्ट करने वाले, दुर्घटना करने पर वाहन चालक के दण्डित न होने की स्थिति, वाहन चालक के अज्ञानी होने पर दोषी कौन और वाहन दुर्घटना से क्षति हेतु चालक को मिलने वाले दण्ड का निरूपण है। १८. स्त्री-पुरुष धर्मप्रकरण
अठारहवें स्त्री-पुरुष धर्म प्रकरण में भगवान नेमनाथ की स्तुति के बाद मुख्यतः स्त्री द्वारा पति को देवरूप मानने और पुरुष को स्त्री का रक्षक होने का निर्देश, ऋतुवती स्त्री का धर्म, पुरुष का कर्त्तव्य सन्तानोत्पत्ति, परस्त्री-त्याग, स्त्री द्वारा कुसङ्ग-त्याग, स्त्री के एकाकी गमन एवं स्त्री-मलोत्सर्ग हेतु निषिद्ध स्थलों का निर्देश है। स्त्री के प्रति पुरुष के कर्त्तव्यों में ऋतुवती स्त्री का स्पर्श-त्याग, पुरुष के लिये रात्रि-भोजन-निषेध, पाँच स्थितियों में स्नान की आवश्यकता और पुरुष का दिन सम्बन्धी कर्त्तव्य निरूपित है।
४. चतुर्थ अधिकार के एकमात्र प्रायश्चित्त अधिकार में भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति के बाद मातङ्ग आदि के स्पर्श सहित भोजन, अठारह वर्णों का भोजन, ब्रह्महत्यादि पाप, अन्य वर्णों द्वारा शूद के साथ अन्न-पानी का व्यवहार, मिथ्यादृष्टि शूद्रों द्वारा स्पर्शित भोजन, पुत्री, माता, चाण्डाली के साथ सम्भोग, जघन्य अपराध करने वालों का अन्न-ग्रहण, भोजन हेतु वर्जित गोत्र में भोजन, मलेच्छ देश में वास आदि करने वालों को अपनी शुद्धि हेतु क्या प्रायश्चित्त करना चाहिये इसका निर्देश है। लघ्वर्हन्नीति के प्रकरणों का पौर्वापर्य
लघ्वर्हन्नीति के प्रकरणों का क्रम-निर्धारण तार्किक सङ्गति के आधार पर किया गया है और वृत्ति में आचार्य हेमचन्द्र ने प्रत्येक प्रकरण के आरम्भ में इस तथ्य का स्पष्ट शब्दों में उल्लेख किया है। भूमिकाभूपाल- गुणवर्णन अधिकार के आरम्भ में कहा गया है - उपयोगी होने के कारण ग्रन्थ के प्रारम्भ में राजा तथा मन्त्री के गुणों को सूचित कर उन राजा तथा मन्त्री की ही कुछ शिक्षाओं का कथन करेंगे -