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पुरुष का नर-नारी के साथ मिलन स्त्रीसंग्रह कहलाता था। नारी की ओर देखकर हँसना, स्त्री का मुख चूमना, स्त्री-प्राप्ति की कामना करना, बिना कारण स्त्री का स्पर्श करना आदि स्त्रीसंग्रह अपराध माना जाता था। इस प्रकरण में भगवान कुन्थुनाथ की स्तुति करते हुये व्यभिचार-अनियन्त्रण से राज्य को हानि, परस्त्री के साथ राजमार्ग में वार्तालाप-दोष, ब्राह्मणी स्त्री के साथ तीन वर्गों के पुरुषों द्वारा सम्भोग पर दण्ड, कई स्त्रियों के साथ वार्तालाप की अदोषता, भिन्न-भिन्न वर्गों के पुरुषों और स्त्रियों में परस्पर सम्बन्ध पर दण्ड, स्त्री-शरीर की अशुचिता, पर-स्त्री-त्याग का उपदेश आदि विषयों का निरूपण है। १४. द्यूत प्रकरण
द्यूत को सर्वव्यसनों का नायक बताया गया है। जिन अरनाथ की स्तुति के बाद द्यूत के प्रकार, द्यूत-स्थल का स्वरूप, द्यूत में जीतने और हारने वाले के मध्य विवाद, द्यूत-स्थल के स्वामी के कर्त्तव्य आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है। १५. स्तैन्य प्रकरण
परद्रव्य-हरण, परोक्ष या प्रत्यक्ष, दिन या रात्रि में, जब भी होता था तो इसे स्तेय कहते थे। सोते हुए, असावधानीवश उन्मत्तावस्था में धन का अपहरण हो जाना भी स्तेय था। पन्द्रहवें स्तन्य प्रकरण में जिन मल्लिनाथ की स्तुति के बाद राजधर्म का स्वरूप, राजधर्म के सम्यक् पालन से राजा को लाभ और इसके अभाव में हानि, चोरी करने, स्वजनों के धर्म-भ्रष्ट होने और चोर आदि को आश्रय देने पर दण्ड, अपराध करने पर दोषी न गिने जाने वाले व्यक्ति आदि का वर्णन किया गया है। १६. साहसप्रकरण
साहस प्रकरण के अन्तर्गत लूट, हत्या, डकैती, बलात्कार जैसे अपराधों की गणना होती थी। ऐसा कर्म जो दूसरों को उत्पीड़ित करने के प्रयोजन से किया जाये, साहस कहलाता था। बल व हिंसा के प्रयोग से किया गया कार्य साहस था। सब लोगों के सम्मुख बल के अभिधान से किया गया अपहरण साहस होता था।
इस प्रकरण में भगवान मुनि सुव्रत की स्तुति के बाद साहस कर्म- अपराध का लक्षण, अपराध की तीन कोटियों-न्यून, मध्यम और उत्तम कर्म - का स्वरूप, अनेक विध साहस कर्म और उनके आचरण पर दण्ड, नकली माप-तोल पर दण्ड, वैद्य न होते हुए भी चिकित्सा, नकली से असली वस्तुओं को बदलना आदि विषयों का निरूपण किया गया है। १७. दण्डपारुष्यप्रकरण
दूसरे के शरीर या किसी अङ्ग पर आयुध से प्रहार करना, शरीर पर अग्नि,