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लघ्वर्हन्नीति
सीमा के विषय में सत्य बोलने वाले को विजय प्रपत्र देना चाहिए, दूसरा (जो असत्य बोलता है) निश्चय ही भूमि के मूल्य के बराबर धन से दण्डनीय है। (अधिक) भूमि के लोभ से जो पुरुष सीमाचिह्नों को नष्ट कर देता है राजा उसे पाँच सौ मुद्राओं (रुपयों) से दण्डित करे। जो उन (सीमाचिह्नों) को अज्ञानतावश या असावधानीवश नष्ट करता है वह दो सौ मुद्राओं से दण्डनीय है और यदि (वह दोषी) निर्धन है तो उसे सात मुष्टियों के प्रहार से दण्डित करना चाहिए ।
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(वृ०) अथ प्रसङ्गतः सेतुकूपक्षेत्र विषये विशेषमाह
अब प्रसङ्गानुसार पुल, कुआँ और खेत के विषय में विशेष कथन सेतुः कूपश्च क्षेत्रेऽपि न निषेध्यो हि क्षेत्रिभिः । स्वल्पाबाधाकरास्तेऽपि बहुलोकोपकारकाः ॥२८॥ यः सेतुः पूर्वनिष्पन्नः संस्कारार्हो भवेद्यदा । तदा तत्स्वामिनं पृष्ट्वा तद्वंश्यं वाथ भूभुजम् ॥२९॥ तं संस्करोति चेत्काऽपि तर्हि तत्फलभाग् भवेत् । अन्यथा तत्फलं स्वामी गृह्णीयाद्वा महीपतिः ॥ ३० ॥
(अपने खेत में भी पुल और कुँआ हो तो खेत के स्वामी द्वारा (दूसरों को) इसके प्रयोग के लिए) रोकना नहीं चाहिए। वे (पुल और कुँआ ) खेत में थोड़ी बाधा पहुँचाते हुए भी (लोगों के लिए) बहुत उपकारक हैं। जो पुल पहले से निर्मित है और वह जीर्णोद्धार (संस्कार) के योग्य हो गया है उसके स्वामी, उसके वंशज अथवा राजा से पूछकर जो जीर्णोद्धार कराता है उसके फल का भागी होता है अन्यथा उसका फल स्वामी या राजा ग्रहण करे ।
(वृ०) परक्षेत्रसेतुविषयोऽयं विधिः ।
दूसरे के खेत में पुल हो तो यह विधि है।
अङ्गीकृतेऽपि क्षेत्रे नो कृषिं कुर्यान्नकारयेत् । तेनापि देयं तन्मूल्यं फलं स्यादथवा न हि ॥ ३१ ॥
( क्षेत्र को ) ग्रहण कर भी जो खेत में न कृषि कार्य करे, न कराये उसे भी उस (खेत) का मूल्य देना चाहिए, फल हो अथवा न हो।
इति संक्षेपतः प्रोक्तः सीमावादस्य निर्णयः । ज्ञेयोविशेषो धीमद्भिर्महार्हन्नीतिशास्त्रतः॥३२॥
इस प्रकार सीमा विवाद निर्णय संक्षेप में कहा गया (इस विषय में) विशेष तथ्यों को बुद्धिमानों द्वारा बृहदर्हन्नीति शास्त्र से जानना चाहिए ।
।। इति सीमावादप्रकरणम्॥