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लघ्वर्हन्नीति
धर्मपत्नी से उत्पन्न पुत्र औरस, परिवार में उत्पन्न शिशु जो यदि माता-पिता द्वारा प्रेमपूर्वक दिया गया हो वह दत्तकपुत्र, मूल्य देकर क्रय किया हुआ क्रीत और अनुज सोदर और पुत्री से उत्पन्न पुत्र दौहित्र ये ( पाँच प्रकार के) पुत्र पैतृक सम्पत्ति के हिस्सेदार हैं । (विधवा स्त्री से अन्य पुरुष द्वारा उत्पन्न) पौनर्भव, ' (अविवाहिता स्त्री से उत्पन्न) कानीन, ( पर - पुरुष से उत्पन्न) प्रच्छन्न, (देवर से उत्पन्न) क्षेत्रज, (लोभ दिखाकर अपनी बनायी हुई स्त्री से उत्पन्न) कृत्रिम, (माता-पिता द्वारा त्यक्त शिशु) अपविद्ध, (माता-पिता द्वारा निष्कासित शिशु) . दत्त, (गर्भवती कन्या से विवाह के उपरान्त उत्पन्न शिशु) सहोढज ये आठ प्रकार के पुत्र जैन परम्परा में सम्पत्ति के भागी नहीं हैं, परन्तु अन्य परम्पराओं में स्वार्थसिद्धि के लिए पुत्र रूप माने गये हैं।
( वृ०) भर्तृमरणान्तरं तत्पत्न्यामन्योत्पन्नः पौनर्भवः । १ । पति की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी को पर पुरुष कन्यायामुत्पन्नः कानीनः ॥ २ ॥
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से उत्पन्न पुत्र
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पौनर्भव है।
कुँवारी कन्या से उत्पन्न पुत्र कानीन है।
परपुरुषात् जीवति भर्तरि गुप्तवृत्योत्पन्नः प्रच्छन्नः।३।
पति के जीवित रहने पर अन्य पुरुष से गुप्त रीति से उत्पन्न पुत्र प्रच्छन्न है।
स्वस्त्रियां देवरात्सपिण्डजादुत्पन्नः क्षेत्रजः |४ |
अपनी स्त्री से सपिण्ड देवर ( पति के भाई) से उत्पन्न पुत्र क्षेत्रज है।
ग्रामादिजीविकालो भदर्शनेन स्वायत्तीकृतः कृत्रिमः । ५ ।
कोई ग्रामीण जो जीविका आदि का लोभ दिखाकर अपने अधीन कर लिया गया हो वह कृत्रिम पुत्र है।
मातृपितृत्यक्तशिशुरनेन केनापि गृहीतोऽपविद्धः । ६ ।
माता-पिता द्वारा त्यक्त शिशु जिस किसी के द्वारा ग्रहण कर लिया गया हो वह अपविद्ध है।
सगर्भाकन्याविवाहोत्तरकालजातः सहोढजः ॥८ ॥
गर्भवती कन्या का विवाह के पश्चात् उत्पन्न पुत्र सहोढज है।
मातृपितृनिष्कासितः तद्वर्जितो वा स्वयमागतो दत्तः ॥७ ॥
माता-पिता द्वारा निष्कासित, त्याग किया हुआ अथवा स्वयं आया हुआ पुत्र दत्त कहलाता है।