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(१०) जन्म-अवतार
जरे-थयो जिनेश हे जिनेश्वर हे केवलि । जवपूरणाय जन्मनी गणत्री पूरी पति !
करवा माटे कृतं मयाऽमुत्र हितं न चेह, लोकेऽपि लोकेश सुखं न मेऽनूत; अस्मादृशां केवलमेव जन्म, जिनेश जज्ञे नवपूरणाय ॥ ६॥
शब्दार्थः-में परलोकमां एवं कांश हितकारी काम करेलु नहि अने (तेथी) हे लोकेश ! आलो. कने विषे पण मने सुख मट्युनहि (माटे ) हे जि. नेश ! अमारा सरखानो जन्म फक्त जन्मनी गणत्री करवा माटेज थयो. ॥६॥
व्याख्याः -मया अमुत्रहितं न कृतं के में परलोकने विषे एवं पुण्य कृत्य कर्यु नहि, अने हे लोकेश ! के षद् कायना स्वामि एवा हे लोकेश ! इहलोकेपि मे सुखं ना जू के आ लाकने विषे पण मने मुख प्राप्त थयुं नहि. ए माटे हे जिनेश के हे केवलिपते ! अस्मादृशां जन्म के अमारा सरखाना अवतार ते, केवलं नव पूरणायैवजझे के केवल अवतार गणनाना पूरणने