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वध विषयाणामेव वधनिवृत्तिर्युक्ता इत्येतनिराकरणम्
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अह परपीडाकरणे ईसिंवहस त्तिविष्फुरणभावे |
जो ती निरोsो खलु आवडियाकरणमेयं तु ॥ २४५।।
अथैवं मन्येत परः - परपीडाकरणे व्यापाद्यपीडासंपादने सति । ईषद्वधशक्ति विस्फुरणभावे व्यापादकस्य मनाग्वधसामर्थ्यविजं भणसत्तायां सत्याम् । यस्तस्याः शक्तेनिरोधो दुष्करतरे आपतिताकरणमेतदेवेति एतदाशङ्कयाह ॥ २४५ ॥
विहिउत्तरमेवेयं अणेण सत्ती उ कज्जगम्भत्ति ।
विष्फुरणं पि हु ती बुहाण नो बहुमयं लोए || २४६॥
विहितोत्तरमेवेदम् । केनेति अत्राह - अनेन शक्तिस्तु कार्यगम्येति । त्रिस्फुरणमपि तस्याः शक्तेर्बुधानां न बहुमतं लोके मरणाभावेऽपि परपीडाकरणे बन्धादिति ॥ २४६ ॥
एवं च जानिवत्ती सा चेव वहोऽहवाविवहहेऊ ।
विसओ विसु च्चिय फुडं अणुबंधा होइ नायव्वा ||२४७ ||
कोई भी प्रत्याख्यान सफल नहीं हो सकता । इस प्रकार वह अप्रमादभाव जिस प्रकार शक्य वधवाले प्राणियों के विषयमें रह सकता है उसी प्रकार अशक्य वधवाले प्राणियोंके विषय में भी वह सम्भव है । अतएव सामान्यसे समस्त प्राणियोंके वधविषयक निवृत्ति हो उचित ठहरती है || २४४ ||
आगे वादी प्रकारान्तरसे उस आपतिताकरणके अभिप्रायको व्यक्त करता है
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वह कहता है कि वधके योग्य अन्य प्राणीको पीड़ित करनेपर जिस वधविषयक उस शक्तिका कुछ परिचय प्राप्त होता है उस शक्तिको रोकना - उसका वध न करना, यही निश्चय से वह आपतिताकरण है । इस प्रकार वादोकी ओरसे यह शंका की गयी है ।
विवेचन -- वधक किसी जातिके एक प्राणीको जो पीड़ा पहुँचाता है उससे उस जाति के समस्त प्राणियों के वधविषयक शक्तिका परिचय वधक्रियाके न करनेपर भी प्राप्त हो जाता है । अवसर प्राप्त होनेपर इस शक्तिको रोकना, यही उस आपतिताकरणका अभिप्राय है । तदनुसार पूर्वोक्त दोष की सम्भावना नहीं रहती || २४५ ॥
इस अभिप्रायका निराकरण करते हुए यहाँ यह कहा जाता है-
'वह शक्ति वधरूप कार्यंसे ही जानी जा सकती है' यह जो पूर्व में ( २४२ ) कहा जा चुका है उसीसे इसका उत्तर हो जाता है। इसके अतिरिक्त प्राणीको पीड़ा पहुँचाकर जो उस शक्ति के विकासका परिचय पाना है वह भी लोकमें विद्वज्जनको बहुमत नहीं है, किन्तु घृणास्पद ही है; किन्तु मारने के बिना भी जो प्राणीको पीड़ा पहुंचायी जाती है उससे भी संक्लेशके कारण कर्मका बन्ध होनेवाला ही है ||२४६||
अब इस प्रकरणका उपसंहार किया जाता है-
इस प्रकार - उपर्युक्त व्यवस्था के अनुसार जो वधसे अनिवृत्ति है वही वध अथवा वधका हेतु है, वधका विषय भी स्पष्टतया वही अनिवृत्ति है, क्योंकि वधकी निवृत्तिके न होनेपर उसकी प्रवृत्तिका सम्बन्ध बना ही रहता है ।
१. अ दुःकरतर । २. असत्तो ए । ३. भ ती सव्वे वही हवावि ।
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