________________
सम्यक्त्वविचारप्ररूपणा वग्गुलीवाही जाओ, मओ य, इहलोगभोगाण अणाभागी जाओ। अवरो न माया अहियं चितेइ त्ति णिस्तंको पियइ, णिरुएण य गहिओ विज्जाकलाकलावो, इहलोगिय भोगाण य, आभागी जाउ त्ति । उपनयस्तु कृत एवेति ॥११॥ सांप्रतं कांक्षादिष्वतिचारत्वमाह
एवं कंखाईसु वि अइयारत्तं तहेव दोषा य।
जोइज्जा नाए पुण पत्तेयं चेव वुच्छामि ॥९२॥ एवं कांक्षादिष्वपि यथा शङ्कायामतिचारत्वम् । तथैव दोषांश्च योजयेत् । यतः कांक्षायामपि मालिन्यं जायते चित्तस्य, अप्रत्ययश्च जिने, भगवता प्रतिषिद्धत्वात् । एवं विचिकित्सादिष्वपि भावनोयम् । तस्मान्न कर्तव्याः कांक्षादयः । ज्ञातानि पुनः प्रत्येकमेव कांक्षादिषु वक्ष्येऽभिधास्य इति ॥१२॥
रायामच्चो विज्जासाहगसड्ढगसुया य चाणक्को ।
सोरट्ठसावओ' खलु नाया कंखाइसु हवन्ति ॥९३॥ ___तत्र कांक्षायां राजामात्यो-राजकुमारामच्चो य अस्सेणावहरियाँ अडविं पविट्टा छुहाहुए। उस समय माताने उन्हें मासकणोंसे स्फोटित-उड़दके दानोंसे छोंका गया-एक पेय दिया। तब उनमेंसे जिसको माता मर चुकी थो वह उसे लेकर विचार करता है कि ये निश्चित ही मक्खियां हैं। इस शंकाके साथ पान करनेपर उसे बार-बार वान्ति हुई व वग्गुलि व्याधि (रोगविशेष ) हो गयी, जिससे वह मरणको प्राप्त होकर इस लोक सम्बन्धी भोगोंसे वंचित हो गया। इसके विपरीत दूसरा पुत्र विचार करता है कि माता कभी अहितको नहीं सोच सकती,
उत्तम पेय समझता हुआ निःशंक होकर पी लेता है। ऐसा करनेपर वह नोरोग रहकर विद्याकलापको ग्रहण करता हुआ इस लोक सम्बन्धी भोगोंका भोक्ता होता है ॥९१।।
____ आगे शंकाके समान अन्य कांक्षा आदिको भी अतिचार व दोषरूप जानना चाहिए, यह निर्देश किया जाता है
इसी प्रकार-शंकाके समान-कांक्षा आदि अन्य अतिचारोंके विषय में भी अतिचारता और उसो प्रकारसे दोषोंको भो योजना करनी चाहिए। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार शंकासे चितको मलिनता और भगवान जिनेन्द्र के विषय में अविश्वासका भाव होनेसे वह सम्यक्त्वके अतिचाररूप है उसी प्रकार उस चित्तको मलिनता और जिन भगवान्पर अविश्वासके जनक होनेसे उन कांक्षा आदिकोंको भी सम्यक्त्वके अतिचाररूप जानना चाहिए। गाथाके अन्तमें ग्रन्थकार उनसे प्रत्येकके उदाहरण कहने का निर्देश करते हैं ॥१२॥
तदनुसार आगे क्रमसे उन कांक्षा आदिके उदाहरणोंका निर्देश किया जाता है
पूर्वोक्त कांक्षा आदिकों के विषयमें ये उदाहरण हैं-राजा व अमात्य, विद्यासाधक श्रावक व श्रावकसुता, चाणक्य और सौराष्ट्रश्रावक ।
विवेचन-गाथोक्त इन उदाहरणोंमें प्रथम राजा और अमात्यका उदाहरण कांक्षासे सम्बद्ध है। उसकी कथा इस प्रकार है-किसी समय राजा और उसका कुमार अमात्य घोड़ेके १. मु दोषाश्च । २. अषु विधास्य इति । ३. अदृसदृ [ड्ढ] गो। ४. अ राजाकुमारामयो यः आसेणा ।