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73/श्री दान-प्रदीप
की इज्जत का सवाल था।
तभी बुद्धि का भण्डार मंत्रीपुत्र सुबुद्धि राजसभा में आया। राजा को नमस्कार करके अपने आसन पर आसीन हुआ। सभी को चिन्तित जानकर उसने पूछा-“हे स्वामी! आज समग्र सभा चिन्तातुर क्यों दिखायी दे रही है?"
राजा ने कहा-"इस चिन्ता के निवारण में तुम्हारी वाणी ही सफल हो सकती है।"
यह कहकर राजा ने प्रधानमंत्री को संकेत किया और प्रधानमंत्री ने अपने पुत्र को उन चारों भाइयों का वृत्तान्त और उनके पिताश्री द्वारा किये गये बँटवारे के बारे में बताया। यह सुनकर औत्पत्तिकी बुद्धि से युक्त कुमार सुबुद्धि ने शीघ्रता से उस सभी घटना को हृदय में धारण किया और क्षणभर का विचार करने के बाद उसका रहस्य जान लिया। फिर उसने राजा से कहा-"हे स्वामी! अगर आप आज्ञा प्रदान करें, तो मैं इस विवाद का शीघ्र ही निर्णय करूं।"
यह सुनकर राजा ने कहा-"शीघ्र ही इस विवाद को निपटाओ।"
तब बुद्धि में बृहस्पति-तुल्य उस मंत्रीपुत्र सुबुद्धि कुमार ने चारों भाइयों को एकान्त में बुलवाकर कहा-"तुम्हारे दीर्घदर्शी पिताश्री युक्त-अयुक्त के ज्ञाता व तुम सब के एकान्त हितचिन्तक थे। अतः उन्होंने तुम्हारे साथ कोई धोखा नहीं किया। तुम्हारे हित के लिए उन्होंने वक्रतारहित होकर तुम्हारे क्लेश-निवारण के लिए यह व्यवस्था की है-ऐसा जान पड़ता है। यह बँटवारा इस प्रकार है-अश्व, ऊँट, बैलादि के क्रय-विक्रय में प्रथम पुत्र की कुशलता है। अतः उसके हिस्से में सभी पशु आये हैं। दूसरे पुत्र की कुशलता खेती के सभी कार्यों में अतुल्य है, अतः उसके भाग में घर, खेत, अनाजादि दिया है। तीसरा पुत्र दुकान के कार्यों में अति कुशल है, अतः उसके भाग में बीज, किरियाणा, उधारादि के लेख प्रदान किये हैं। इसी अर्थ को बताने के लिए तुम्हारे पिता ने अनुक्रम से तुम सब के घड़ों में केश, मिट्टी और कागजादि डाले हैं। चौथा पुत्र उस समय छोटा होने से किसी भी कार्य में कुशल नहीं था। अतः उसके निधान में सुवर्णादि रखा है। अब मैं तुमलोगों से पूछता हूं कि उसके स्वर्ण-मुक्तादि निधान का कितना-प्रमाण धन है?"
सुबुद्धि के द्वारा पूछे जाने पर भाइयों ने कहा-"लगभग एक लाख द्रव्य है।"
तब सुबुद्धि ने कहा-"अगर तुम गहराई से विचार करोगे, तो तुम सभी के भाग में भी लगभग इतने ही द्रव्य का निधान होगा। यही तुम्हारे विवाद का निर्णय है। जो वस्तु जिसको फलदायक थी, तुम्हारे पिताश्री ने दीर्घदृष्टि से विचार करके उसके भाग में वही वस्तु दी है, जिस प्रकार कि कोई वैद्य औषधि देता है। अतः स्वच्छ बुद्धि से युक्त अपने पिताश्री पर और लघु