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323/ श्री दान-प्रदीप
पर रहे हुए देव-मन्दिर में जाकर छिप गया।
इसी अवसर पर उस ध्वजभुजंग के पुण्य से प्रेरित होकर कोई भामह नामक परदेशी सार्थवाह माल लादे हुए अनेक बैलों के साथ उस तालाब पर आया। वे बैल उस सरोवर में पानी पी-पीकर आगे चलने लगे। उनमें से एक बैल के ऊपर लादी गयी बोरी सरोवर के पानी में गिरती हुई देखकर ध्वजभुजंग ने तुरन्त मानो अपने दुष्कर्मों की श्रेणि गिर रही हो इस प्रकार से उस बोरी को लपक लिया। चारों तरफ अच्छी तरह देख लिया कि उसे कोई देख तो नहीं रहा है। उसके मन में अत्यन्त चिन्ता थी कि मैं उन जुआरियों का धन कैसे चुकाऊँ? फिर गिरी हुई बोरीवाले उस बैल को देखकर सार्थवाह खेद के परवश होकर मानो उसका जीवन ही नष्ट हो गया हो इस प्रकार से म्लान मुखवाला बन गया। फिर वह अपने मनुष्यों के साथ सरोवर में चारों तरफ उस बोरी को ढूंढ़ने लगा, पर हाथ में से गिरे हुए स्वर्ण की तरह किसी भी स्थान पर वह बोरी नहीं मिली। शून्य चित्तवाला सार्थवाह चारों तरफ घूमने लगा। तभी उसने समीप में रहे हुए ध्वजभुजंग को देखा।
___उसने उससे आदरपूर्वक पूछा-“हे महाभाग्यवान! बैल के ऊपर से बोरी पानी में गिर गयी अथवा किसी ने उसका हरण कर लिया? क्या तुमने देखा? वह बोरी स्वर्ण की मोहरों से भरी हुई थी। सम्पूर्ण सार्थ का मानो द्वितीय जीवन हो इस प्रकार वह बोरी सर्वस्व थी। उसके बिना सारा सार्थ निष्प्राण हो जायगा, क्योंकि धन ही प्राणियों का प्रथम प्राण है। अतः हे भद्र! अगर आप उस बोरी के बारे में जानते हैं, तो शीघ्र ही बतायें, क्योंकि सत्पुरुष परहित करने में आसक्त होते हैं।"
इस प्रकार मधुर वाणी के द्वारा सार्थवाह ने उससे पूछा, तो वह अत्यन्त खुश हुआ। मन में विचार करने लगा-"निश्चय ही मैंने पूर्वजन्म में दूसरों पर द्वेषादि करने रूप पाप किया होगा, अन्यथा मेरी यह दुष्ट दशा कैसे होती? तो अब मैं वैसा दुष्कर्म क्यों करूं? इसके साथ छल करने से केवल द्रोह ही नहीं होगा, बल्कि सर्व सार्थ के मनुष्यों की हत्या का भी पाप लगेगा। मैंने अपने पिता का न्यायोपार्जित धन भी जुए में गँवा दिया, तो अन्याय से प्राप्त इस धन को कितने समय तक अपने पास टिका सकूँगा?"
इस प्रकार मन में निश्चय करके उसने सत्य बात बता दी, क्योंकि हित करनेवाले पुरुष अगर दरिद्री भी हो, तो भी वे परद्रोह नहीं करते। उसने कहा-“हे सार्थेश! तुम्हारी वह बोरी पानी पीते हुए बैल पर से इस जगह गिर गयी थी। तुम इसे सम्भाल लो।"
इस प्रकार उसके अमृत-तुल्य वचनों को सुनकर सार्थवाह खुश हो गया। उस स्थान से उसने बोरी खींचकर निकाली और अन्तर में से पीड़ा को बाहर निकाल दिया। बोरी प्राप्त करने