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________________ चतुर्विधदाननिरूपण new s nrus - - दातेंद्राय स धार्मिकोऽत्र सकलद्रव्यं प्रदाताईते । स स्वामी निजभाग्यचिह्नमखिलं दत्वा सुखं रक्षति॥७६॥ अर्थ-जिस प्रकार प्रजायें राजाको कर देते समय अपने ग्राम में किसी छोटे अधिकारीको देती है। वह अधिकारी प्रामाधिकारीको देता है फिर वह प्रामाधिकारी अपने उपरके अधिकारियोंद्वारा राजातक पहुंचा देता है। राजा भी हितैषिता पूर्वक प्रजावोंकी रक्षा करता है । इसी प्रकार धार्मिक दाता भी संपूर्ण पूजाद्रव्यको इंद्रके ( देवार्चक ) पास भेजें इंद्र उन द्रव्योंको भगवान्की सेवामें अर्पण करें । इस प्रकार परम भक्तिसे जो भगवान् जिनेंद्र की पूजा की जाती है उससे फलरूप स्वर्गादि संपत्तिरूप सुग्वको यह मनुष्य प्राप्त करता है ॥७६॥ हितमितसविनयवाग्भिर्दाताखिलधार्मिकोऽजनं ॥ शक्त्युचितधनं दत्वा कुर्यादिन्द्रस्य तस्य सत्कारं ॥७७॥ अर्थ-धार्मिक दाता हित भित मधुर व विनययुक्त वचनोंसे युक्त होकर अपने शक्तिके अनुसार धन देकर उस देवार्चकका सत्कार करें ।। ७७ ॥ स्नानाभ्यंगविलेपनस्यवमनस्रक्पुष्पभूषापट- । श्रृंगारं वठरत्वनिष्ठुरवचः क्रोधांगसम्मर्दनम् ।। तांबूलांजनदतधावनलतांताघ्राणकंडूनन । भ्रविक्षेपणकामवैकृतमिदं चैत्यालये वर्जयेत् ॥ ७८ ॥ अर्थ-स्नान करना, तेल वगैरह मलना, नरयसेवन करना, सुगंधित पदार्थोका हेगन करना, पुष्पमाला वगैरह धारण करना, आमरण वगैरह धारण करना, श्रृंगार करना, हल्ला करना, क्टुवचन कहना, क्रोधित होना, शरीर मलना, तांबूलसेवन करना, अंजन लगाना, दांतुन करना, नद्दी चढाया हुआ फूलको सूधना, खुजलाना,
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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